गुरु का व्यव्हार कभी समझ में नहीं आएगा
हमारी देखने की दृष्टि उतनी व्यापक व समग्र नहीं होती है जितना उनका व्यव्हार व्यापक होता है | इसी कारण जो व्यवहार दिखता है,वह होता नहीं है | और जो होता है, वह दिखता नहीं है | गुरु का व्यव्हार कभी समझ में नहीं आएगा | व्यवहार से कैसा लगा उधर ध्यान दो | प्रत्येक व्यव्हार को अनुभव करना चाहिए क्योंकि सतगुरु चैतन्य शक्ति का माध्यम है | जब वे गालियां भी देते हैं ,तो उनका उद्देश्य किसी को आहत करना नहीं होता | जिस प्रकार लोहा लोहे को काटता है ,बस ऐसा ही कुछ उस व्यव्हार का अर्थ होता है ,गुरु के शब्दों का बाण दोषों पर होता है ,व्यक्ति विशेष के अहंकार पर होता है | तो ऐसे गाली को खाकर भी मनुष्य को प्रसन्नता का अनुभव होता है क्योंकि उससे अहंकार नष्ट होता है और चित्त शुद्ध होता है और उसका आनंद बहुत कम भाग्यशाली अपने जीवन में ले पाते हैं |
स्वविचारों से संस्कारित गद्य -
हि .स .यो.१/३२६
Comments
Post a Comment