परमात्मा का कार्य परमात्मामय होकर करो।
बडे मुनि महाराज ने कहा,
" एक शरीर के लिए अनेक शक्तियों को संभालना असंभव ही है। परमात्मा की कृपा भी तब बरसती है, जब भक्त परमात्मामय हो जाता है। तुम्हारे गुरु भी परमात्मामय हो गए थे। अब यह कार्य उन्हीका है। वह भी उन्हींकी तरह, परमात्मामय होकर ही किया जा सकता है।
परमात्मा विश्व को संचालित करने वाली शक्ति है, वह व्यक्ति नहीं है। इसलिये एक व्यक्ति रहते हुए उसे धारण किया ही नहीं जा सकता है। तुम्हें समर्पित होना ही पडेगा, तभी कार्य हो सकता है। तुम्हें परमात्मामय होनाहोगा, तभी अहंकारसे बचा जा सकता है।
इसलिए शरीर के स्तर पर कार्य मत करो, आत्मीय स्तर पर कार्य करो। और सदैव , परमात्मा का कार्य परमात्मामय होकर करो। तभी अहंकार रुपी राक्षस से अपने आपको बचा सकते हो।
हि.स.योग.४, पेज. २५२.
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