एकांत में अधिक समय रहने पर हम एकांत के आदी हो जाते हैं।
एकांत में अधिक समय रहने पर हम एकांत के आदी हो जाते हैं। मनुष्यों की हमें आदत नहीं रहती है और मनुष्यों में हमें अच्छा नहीं लगता है।इस स्थिति में पहुँचने के बाद सही मायने में ध्यान की शुरुआत होती है और सालों ऐसे एकांत में रहने के बाद आसपास खड़े कोई दूसरे शरीर से भी रुकावट खड़ी हो जाती है। और यही कारण होगा कि मेरे गुरु सामान्य मनुष्य को आत्मज्ञान देना भी चाहते थे,फिर भी वे समाज में जा नहीं पाते थे। उन्होंने आत्मज्ञान देने के लिए ही मुझे माध्यम बनाया होगा। क्योंकि माध्यम बीच का होता है,वह न तो पहाड़ का उच्च शिखर होता है और न पहाड़ का निचला ,तलहटी का भाग होता है। माध्यम तो केवल रास्ता होता है,नीचे की तलहटी से लेकर ऊपर के उच्च शिखर तक भी वह पहुँचा होता है।रास्ता
दोनों से जुड़ा होता है पर वह वास्तव में न ऊपर का होता है,न नीचे का होता है। रास्ते का अपना एक महत्व है क्योंकि रास्ते के बिना पहाड़ की ऊँचाई
केवल देख सकते हैं,उस ऊँचाई तक कभी पहुँच नहीं सकते हैं।ठीक इसी प्रकार से,समाज का
मनुष्य आत्मजागृति के बारे में पुस्तकों में पढ़ सकता है--कैसे पूर्व के संतों ,महात्माओं को मिली उसका वर्णन पढ़ सकता है पर पा नहीं सकता। आत्मानुभूति को पाना है तो उसके लिए माध्यम चाहिए ही। माध्यम के बिना आत्मसाक्षात्कार पुस्तकों में ही सिमटकर रह जाएगा। वह आत्मसाक्षात्कार कराने के लिए मुझे समाज में जाना ही होगा।जिनपर पूर्वजन्म के संस्कार हैं,जो पूर्वजन्म से गुरुओं से जुड़े हैं,हो सकता है,उन लोगों को मेरी आवश्यकता न हो।क्योंकि वे उस संसार को छोड़कर इस संसार में आ ही जाएँगे। लेकिन इस जगत की जानकारी सामान्य मनुष्य को नहीं है।.....
हि.स.यो-४
पु-३४०
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