जिस व्यक्ति भीतर घाव होते हैं ,वही दूसरों को भी घाव देता है

सामान्यत : जिस व्यक्ति भीतर घाव  होते हैं ,वही दूसरों को भी घाव देता है | यानी वह दूसरे को घाव देकर कहीं ,अपने ही घाव को कुरेदता रहता है | यानि अपने प्रति भी वह हिंसक ही है | और जिसके पास घाव है ही नहीं ,वह किसी को घाव कैसे दे सकता है ? क्योंकि कुछ भी दूसरों को देने के लिए प्रथम वह स्वयं तुम्हारे पास तो होना चाहिए |- इसलिए गालियाँ खाया हुआ व्यक्ति ही गालियाँ देते रहता है | गालियाँ एक प्रकार की दुर्भावना है | जो दुर्भावना नहीं रखता,वह गाली नहीं रख सकता है | और दुर्भावना एक अच्छे ,शुद्ध चित्त  का  प्रतीक नहीं है | जब चित्त दूषित हो तभी मुख से गाली निकल सकती है और उस निकली गाली से कोई आहत हो सकता है |

हि.स.यो.१/३२५

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