सूर्यास्त को देखकर प्रार्थना की

रोज़ की तरह आज भी स्नान किया ।सूर्यास्त को देखकर प्रार्थना की ,"गुरुदेव ,मै सूर्य के रुप मे आपको वंदन कर रहा हूँ ।अब  मैने  मेरा सारा अस्तित्व ही आपको समर्पित कर दिया है ।अब मेरी निजी ,ऐसी कोई प्रार्थना नही है ।अब मेरा कोई  अस्तित्व ही नही है ,तो फ़िर निजी प्रार्थना कैसे हो सकती है ?मै तुम्हारी  लीला समझने मे असमर्थ हूँ ।अब तुम जैसा चाहो ,वैसा ही हो ।जीवन की सभी  घटनाएँ आपकी इच्छानूसार हो ,बस यही प्रार्थना  है ।"प्रार्थना की  और सूर्यास्त देखा ।

॥ बाबा स्वामी ॥
       

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