गुरुकार्य भी उतना करो जितना ईजी वे में आप कर सको
गुरुकार्य भी उतना करो जितना ईजी वे में आप कर सको , जितना आसानी से कर सको , सचमुच गुरुचरणों पे चित रखके कर सको। जहाँ तुम्हारा चित इधर-उधर डाँवाडोल- डाँवाडोल होने लग गया , समझ लेना- गड़-बड़ हो रही कहीं तो, अब घर बैठने का टाईम आ गया। तो घर बैठो। थोड़ा बैलेन्स करो अपने- आपको, संतुलित करो। गुरुकार्य कहाँ भागे जा रहा है ? तो कहने का मतलब , उतना ही करो जितना तुम आसानी से कर सको , जितना हजम कर सको। गुरुकार्य को भी हजम करना पड़ता है। क्योंकि कार्य करने गए तो चित जाता ही (है) ना? यह स्थान पे जाता है,परिस्थितियों पे जाता है , लोगों पे जाता है, दूसरे साधकों पे जाता है। ऐसे जहाँ चित भरकटने लग गया , चित इधर-उधर जाने लग गया, थोड़ा अपने चित्त को स्थिर करो। स्थिर करके....गुरुचरणों पे स्थिर करो और स्थिर करके कार्य करो। ऐसा कार्य करो। तो मैं चाहता हूँ कि जो चेंज आ रहा है, जो बदलाव आ रहा है, उसका सचमुच फायदा आपको मिल सके। क्योंकि केवल,सिर्फ जुड़े रहने से कुछ नहीं हो सकता।
मधुचेतन्य २०१०
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