जीवनभर की तपस्या से प्राप्त की हुई शक्त्तियाँ अधिकृत रूप से सौंपी हैं।
" तुम स्वयं एक पानीभरा बड़ा बादल हो। वह यह दर्शात है कि वह कहीं-न-कहीं बरसने ही वाला है। क्योंकि बरसना बादल के चाहने और न चाहने के ऊपर निर्भर नहीं होता क्योंकि बरसना बादल का स्वभाव ही होता है।बादल को बरसना तो कहीं न कहीं है ही। तुम्हारी स्थिति कुछ वैसी ही है।तुम्हें माध्यम के रूप में तैयार करने के लिए कई सदगुरुओं ने अपना समस्त जीवन लगाया है और जीवनभर की तपस्या से प्राप्त की हुई शक्त्तियाँ अधिकृत रूप से सौंपी हैं। इस ' ' रूप से सौंपने का आध्यात्मिक क्षेत्र में बड़ा महत्व है।किसी भी माध्यम को अधिकृत तब तक नहीं किया जाता, जब तक वह योग्य न हो। तुम्हेंअधिकृत किया है यानी तुम योग्य हो।जब गुरुदेव अधिकृत करते हैं तो माध्यम का कोई महत्व ही नहीं रह जाता।सब कुछ निश्चित ही हैं -- भविष्य के स्थान, व्यक्त्ति, परिस्थितयाँ,समयावधि। सब कुछ एक निश्चित कार्यक्रम -सा लग रहा है। और वह एक निश्चित समयावधि में होगा ही। तुम्हारे गुरुओं को माध्यम की आवश्यकता थी क्योंकि बिनामाध्यम के यह संभव ही नहीं था। और तुम्हारा निर्माण ही उनकी आवश्यकता और इच्छा के अनुसार हुआ है। इसलिए तुम्हें भी जीवन में अनुभव होगा कि समयावधि पूर्ण होने पर गुरुकार्य अनायास ही हो जाता है। तुम्हारी विशेषता यह है कि तुम शुध्द ,पवित्र माध्यम हो। इसीलिए इतने गुरुओं ने तुम्हेंअपने माध्यम बनाया है। तुम में गुरुओं की सामूहिकता अनुभव होती है और यह एक जन्म में संभव ही नहीं है।".
हि.स.यो-४
पु-३३८
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