आध्यात्मिक प्रगति के लिए संघ की बड़ी आवश्यकता है

" आध्यात्मिक प्रगति के लिए संघ की बड़ी आवश्यकता है क्योंकि प्रगति के लिए आवशयक गुण एक आत्मा में हो ही ,यह आवश्यक नहीं है। लेकिन संघ की सामूहिकता में वे गुण स्वयं निर्मित हो जाते हैं और सामूहिकता में आत्मा की वह प्रगति होती है जो अकेले कभी हो ही नहीं सकती। सदैव अकेले  ध्यान करने जैसी शारीरक और मानसिक स्थिति हो,यह आवश्यक नहीं है। लेकिन सामूहिकता में वह स्थिति एक -दूसरे की मदद से मिल जाती है। इसीलिए कहतेहैं,सामूहिकता में एक और एक दो नहीं होते , ग्यारह होते हैं। और सद्गुरु तो एक चलता फिरता संघ ही होते हैं।वह शरीर दिखने में भले एक ही हो लेकिन वह शरीर लाखों आत्माओं से जुड़ा हुआ होता है।। इसीलिए,उस शरीर के साथ लाखों आत्माओं की सामूहिकता होती है। सद्गुरु की आत्मा प्रत्येक जन्म के साथ आत्माओं को केवल जोड़ते रहती है। कुछ आत्माएँ उसे छोड़ देती हों ,वह किसी को नहीं छोड़ती है क्योंकि छोड़ना उसका स्वभाव ही नहीं है। उसे केवल जोड़ना ही आता है। इसीलिए सद्गुरु के अंतिम जन्म में लाखों आत्माएँ  उनसे जुड़ती हैं। जिस प्रकार छोटी नदियाँ अंत में सागर में ही आ मिलती हैं, ऐसी स्थिति होती है।"
पूर्वजन्मों में तुमने जितनीआत्माएँ जोड़ी हैं,वे सब आकर सब तुमसे मिलने वाली हैं। यह तुम्हारा अंतिम जन्म है,इसलिएआत्माओं की बहुत बड़ी सामूहिक शक्त्ति तुम्हारे जीवन काल में बनेगी। और उसी सामूहिक शक्त्ति के प्रभाव में जीवनकाल के बाद  भी कार्य होता रहेगा। हम गुरु हैं ,हमारा कार्य हम तक ही सीमित है,हम मोक्ष की स्थिति केवल पाना चाहते थे और हमारे जीवन में मिल गई है। अब उस स्थिति को केवल बनाए रखेंगे।".....

हि.स.यो-४                  
पु-३३६

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी