स्त्री का पूर्ण स्वरूप माँ का ही है

" स्त्री का पूर्ण स्वरूप माँ का ही है | वह सदैव माँ ही होती है | और माँ होना स्त्री का मूल स्वभाव है और जब वह उस स्वभाव के अनुरूप होती है तो उसके भीतर से ऊर्जा का एक प्रभाव निकलता है | वह ऊर्जा उसके मूल स्वरूप के कारण ही निर्मित होती है | बच्चे को जन्म देना तो एक शारीरिक क्रिया है और माँ होना तो स्त्री का मूल स्वभाव है | इसलिए बच्चा हो या न हो, स्त्री तो माँ ही होती है | इसलिए प्रत्येक स्त्री माँ हो या न हो, पर उसे स्वभाव से माँ ही होना चाहिए, तभी वह अपने प्राकृतिक रूप में, प्राकृतिक स्वभाव में होगी | और स्त्री जितनी प्राकृतिक स्वभाव में होगी , उतनी ही परमात्मा के करीब होगी और परमात्मा के जितनी करीब होगी, उतनी ही शुध्ध व पवित्र होगी | "

हि.स.यो-२
पृष्ठ-१६७

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