हे परमात्मा , तेरी माया भी निराली है
हे परमात्मा , तेरी माया भी निराली है ।तू यह माया का खेल खेलते रहता है ।तेरी माया को अज्ञानी लोग समझ नही पाते है और वे बेकार मे ही अटक जाते है ।एक अटकता है --"मैने " दान दिया यानी इस अज्ञान के कारण अपने "मै " पर अटक गया ।और दूसरा ,जो दान या भेट प्राप्त करता है ,वह अटक जाता है की "मै " इतना अछा हूँ की इसीलिए "मुझे " ही दिया ।यानी ये दोनों ही नाहक भटक जाते है ।देनेवाली शक्ति भी तू ही है और पानेवाली शक्ति भी तू ही है ।लोग तुझे ही तेरा वापस करते है ।मै सब समझ गया हूँ ,अब मैं तेरी सब माया जान गया हूँ की तू ही तू है ,यहाँ "मै " हूँ ही नही ।
बाबा स्वामी . . . . .
ही .स .योग 2/192
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