प्रत्तेक क्षण को ईश्वर का प्रसाद मानना

अपना  कार्य  श्रेष्ठ  तरीके  से  करना , औरों  का  प्रभाव  स्वयं  पर  न  पढ़ने  देना  और  जीवन  की  प्रत्तेक  घटना  को . . . प्रत्तेक  क्षण  को  ईश्वर  का  प्रसाद  मानना --यही  तो  तेरे जीने  का  तरीका  है ।

वंदनिय गुरुमाँ को अनामिक संदेश
    माँ 
पुष्प २--१५३

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