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Showing posts from January, 2018
ग्रह-नक्षत्र
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गुरुदेव ने शून्य की ओर देखते हुए कहा, " ये सब ग्रह-नक्षत्र की बातें तू शरीर के स्तर की कह रहा है | जिसे गुरुछत्र मिल गया, उस पर ग्रह-नक्षत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है | अरे बाबा, गुरु कोई व्यकित थोड़ी ही होता है, एक बड़ा, जन-सामूहिकता का, सागर होता है | एक सागर में तू समाहित हो गया, तो तेरा अलग अस्तित्व ही नहीं है | फिर, तुझ पर बुरा प्रभाव पड़ेगा कैसे? बुरा प्रभाव पड़ने के लिए अलग अस्तित्व होना चाहिए न ? हि.स.यो-१ पृष्ठ-२९१
वह महाशिवरात्रि के दिन जन्म लेगी
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मुझे अचानक मेरे दो बच्चे याद आ गए।मेरी इसी ध्यानसाधना कीधुन में मैं घर के बाहर अधिक रहता था। मेरी पत्नी ही मेरे बच्चों की माँ थीऔर वही उनकी पिता थी।दोभूमिकाएँ वह बेचारी अकेली ही निभाती थी। बच्चों को पिता जीवित होते हुए भी पिता का सान्निध्य कम ही मिल पाया था।लेकिन जब मैं घर में रहता था तो पूरा समय उन्हें देने का प्रयास करता था। क्योंकि भीतर कहीं आत्मग्लानि रहती--कि मैं पिता का कर्तव्य पूर्ण नहीं कर पा रहा हूँ। जब बच्चों को पैदा किया तो उन्हें सँभालना भी अपनी जिम्मेदारी है।मैंने मेरा यह कर्तव्य भी गुरुचरण पर समर्पित कर रखा था। और यद्यपि मैंने उन्हें नहीं सँभाला पर गुरुशक्तियों ने उन्हें बराबर सँभाला था।वे कब बड़े हुए,मुझे पता भी नहीं चला था। मेरे कुछ न करते हुए भी,पता नहीं क्यों जीवन में सबकुछ साथ-साथ होता चल गया।शादी,दो बच्चे....और तीसरी कन्या भी महाशिवरात्रि के दिन आनेवाली थी। मुझे पता नहीं क्यों,पहले से लड़की ही चाहिए थी पर वह कभी हुई नहीं थी।लेकिन इस बार गुरुकृपा से वह इच्छा भी पूर्ण होने वाली थी। गुरुदेव सभी इच्छाओं को पूर्ण करके गुरुकार्य का प्रारंभ करना चाहते थे,ऐसा लग रहा था। मु
चैतन्य का सानिध्य
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मेरे साधनारत काल की औऱ आज के साधक की स्थिति का अवलोकन करता हूँ , तो लगता है , हम जब गुरुदेव के सानिध्य मे जाते थे , हमारा चित्त कभी भी उनके शरीर के ऊपर नही होता था । सदैव हम शरीर से परे जो शक्तियाँ होती थी , उनके चैतन्य को अनुभव करते थे । ...आज के साधकों को देखता हुँ , उन्हे ५ साल होने के बाद भी शरीर का आकर्षण ही नही समाप्त हो रहा है । वे शरीर के सानिध्य के मायाजाल में अटकते ही जा रहे है । अभी भी चरण -स्पर्श की इच्छा रहती है । उनकी यह स्थिति देखकर मुझे भय लगता है औऱ मैं स्वयं को औऱ छुपाता हूँ औऱ साधकों से सदैव भागने का प्रयास करते रहता हूँ क्योंकि मैं उन्हे चैतन्य का सानिध्य देना चाहता हुँ , वे शरीर का सानिध्य चाहते है , इस शरीर के भीतर झाँकने की कोशिश नही करते । परमपूज्य गुरुदेव बाबा स्वामीजी [ आध्यात्मिक सत्य ] १-४-२००७
सामूहिकध्यान ही एकमात्र मार्ग
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इस प्रकार,इस कार्य से कौनसी आत्माएँ लाभान्वित होंगी, यह भी निश्चित है। वे अंततः इस ज्ञान तक पहुँच ही जाएँगी। अब वे तुम्हारे जीवनकाल में जुड़ती है,यह देखना भी तुम्हारा ही कार्य है।यह कार्य बहुत बड़ा है और जीवनकाल छोटा है।इसलिए यह कार्य तो जीवनकाल के बाद भी तुम्हें ही करना है। तुम्हें अपना कार्य सौंपकर सभी गुरु निश्चिंत हो गए हैं।तुम्हारे कार्य के साथ इनकी मुक्त्ति जुड़ी हुई है क्योंकि ये भी अपने दिए हुए आश्वासनों से बँधे हुए हैं।वे उनके शिष्यों को तुमसे जोड़ते जाएँगे और वे मुक्त्त होते जाएँगे।तुम तो एक विशाल सागर का रूप लेने वाले हो जिसमें कई छोटी-छोटी नदियाँ आकर मिलने वाली हैं।और नदियाँ सागर में आकर मिल जाती हैं और सागर का रूप ले लेती हैं।यह कार्य समाज में सामूहिकता में ही करना ताकि प्रत्येक आत्मा संतुलित रहकर ही आगे बढ़ सके।और वैसे भी समाज के वातावरण में सामूहिकध्यान ही एकमात्र मार्ग है। मैंने महसूस किया कि मेरा सारा शरीर ही ठण्डा हो गया था। आसपास के पक्षियों की आवाजों के साथ-साथपहाड़ों से टकराकर आने वाली तेज हवा से जो एक विशिष्ट ध्वनि निर्मित हो रही थी,वह भी सुनाई दे रही थी।मेरे सहस्
मोक्ष की स्थिति
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मोक्ष की स्थिति वह अति निर्मल और पवित्र अवस्था है, जिसमें कोई पाप या पुण्य का कर्म बाक़ी नहीं रहता, कुछ भी जीवन में करने को बाकी नहि रहता, जीवन में कोई इच्छा बाक़ी नहीं रहती, जीने की इच्छा भी बाक़ी नहीं रहती है। चित से सभी स्मृतियाँ समाप्त हो जाती है। एसी परिशुद्ध अवस्था को “मोक्ष” कहते है। बाबा स्वामी HSY 6 pg 253
समर्पण ध्यान एक संस्कार
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संस्कार से मेरा आशय , इसके अंदर शरीर को कोई महत्व नही है । आपके अहंकार को पुष्टि मिले ऐसा कुछ भी नही है । देखिए , कोई भी पद्धति अवलंब करते है , उसके अंदर शरीर का उपयोग होता है , शरीर की उपयोगिता होती है औऱ उसके बाद में आप कह सकते है -इस पद्धति से , इस तरीके से मैने अभ्यास किया औऱ अभ्यास करके फिर ध्यान को प्राप्त् किया , ध्यान की स्थिति को प्राप्त् किया । इस प्रकार का कोई भी अहंकार आप कर सके ऐसा इसमें कुछ भी नही है । कुछ नही , चुपचाप आकरके आप बैठ जाओ , उसके बाद में आत्मा से आत्मा तक एक सूक्ष्म संपर्क स्थापित हो जाता है औऱ एक आत्मा अपना ही एक अंश अन्य आत्माओं को प्रदान करती है । औऱ प्रदान करने के बाद में , उस आत्मा का उस आत्मा के साथ एक आत्मीय संबंध स्थापित हो जाता है । ... परमपूज्य गुरुदेव गुरुपूर्णिमा 9 जुलाई 2017 क.स.आश्रम,पुनडी .