नियमित ध्यान किया लेकिन मेरी आध्यात्मिक प्रगति क्यों नहीं हुई?
ध्यान करना और ध्यान होना , यानी ध्यान लगना, ये एकदम दो अलग सिरे हैं | कई बार हम नियमित रूप से ध्यान करतें हैं, हम एक निश्र्चित समय पर ध्यान करते हैं और कल्पना कर लेते हैं कि मैं तो नियमित ध्यान कर रहा हूँ | लेकिन ऐसा हम हमारी आत्मा को ही धोखा देते रहते हैं | और जब सालो ध्यान करने के बाद भी प्रगति नहीं होती तो अपनी नजर में गिर जाते हैं कि इतना नियमित ध्यान किया लेकिन मेरी आध्यात्मिक प्रगति क्यों नहीं हुई? वास्तव में, इसीलिए ध्यान के साथ-साथ अपनी आत्मा के साथ संपर्क भी नियमित होना चाहिए |आत्मा आपको सदैव सत्य बताती है लेकिन आप उसे महसूस करो तब ! लेकिन आप नहीं पूछेंगे तो वह नहीं बताएगी | वह तो सत्य स्थिति जानती है कि ध्यान तो यह शरीर कर रहा है लेकिन ध्यान में इसका मन भटकता रहता है | तुम्हारे मन की अभिलाषा और प्रश्न तुम्हे कभी स्थिर नही होने देते है | तो आपका ध्यान लगता है या नहीं, यह प्रश्न दूसरे किसी से पूछने से अच्छा है - अपनी आत्मा से पूछो, अपनी आत्मा को ही अपना शिक्षक बनाओ |
हि.स.यो-४
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