गुरु का अस्तित्व ही गुरुकार्य में
सद्गुरुओं की शक्त्तियाँ समाजरुपी सागर में तुम्हारे जहाज को आगे बढ़ने की गति प्रदान करेंगी और सामूहिक ध्यान की शक्त्ति उस जहाज को पाल बाँधने का कार्य करेगी, गलत दिशा में जाने से रोकेगी। इसलिए इस ध्यान पध्दति में अनुभूति के साथ-साथ सामूहिकध्यान का महत्व भी सभी को बताना होगा। क्योंकि सामूहिक ध्यान चित्त पर नियंत्रण रखेगा, अहंकार परनियंत्रण रखेगा।क्योंकि सामूहिकता के साथ जुड़ने के साथ ही अधिक ऊर्जा का संचार होता है और उस अतिरिक्त ऊर्जा से अहंकार आने की संभावना होती है क्योंकि वह प्रगति मनुष्य के स्वयं के प्रयत्नों से नहीं हुई होती है,गुरुकृपा में हुई होती है, सामूहिकता में हुई होती है।लेकिन इस बात का ध्यान सदैव नहीं रहता है। इस बात का ध्यान सतत दिलाना होगा।और यह सब तभी तक होता है,जब तक हम समर्पित नहीं होते हैं,केवल तब तक। बाकी तो समर्पित होने के बाद साधक ही माध्यम हो जएगा।जिस तरह गुरुशक्त्तियों से जुड़ने का माध्यम तुम्हें बनाया है,तुम कई माध्यम स्थानों का निर्माण करो जो तुम्हारे बाद भी तुम्हारे कार्य को समाज में करते रहेंगे।मनुष्य को जैसी सामूहिकता मिलती है,वह वैसा ही तैयार होता है। जब समाज में अनुभूति की सामूहिकता मिलेगी तो वह अनुभूति के ज्ञान के साथ तैयार होगा,परिपक्व होगा। और जिस शान्ति को वह सदैव बाहर खोजते फिर रहा है,उसे वह अपने ही भीतर पाएगा।
समय-समय पर गुरुशक्त्तियाँ तुम्हें मार्गदर्शन देंगी।इसलिए कभी मत समझना कि तुम समाज में अकेले हो और गुरुशक्त्तियों से दूर हो। किन्हीं गुरुशक्त्ति को पकड़ना है तो उसके कार्य को पकड़ो क्योंकि गुरु का अस्तित्व ही गुरुकार्य में होता है। इसलिए,गुरुकार्य को पकड़ोगे तो तुम्हें लगेगा कि तुमने गुरु को ही पकड़ा है और तुम गुरु के ही सान्निध्य में हो।इस बात का अनुभव तुम्हें समय-समय पर होगा...
हि.स.यो-४
पु-४५०
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