युवा पीढ़ी कहती है--ईश्वर है तो उसकी अनुभूति कराओ।

आज की पीढ़ी परमात्मा के अस्तित्व पर ही सवाल उठा रही है।क्योंकि जो धार्मिक व्यक्त्ति हैं,उनमें मूलतः कोई बदलाव होता हुआ युवा पीढ़ी को नहीं दिख रहा है और न ही ,धार्मिक व्यक्त्ति पर कोई बंधन उन्हें दिख रहा है।धर्म अपनाकर बुरे कार्य करनेवाले लोग उन्हें दिख रहे हैं।उन्हें इस अँधेरे में कोई भी धर्म ऐसा  हीं दिख रहा है जिस धर्म के सभी लोग अच्छे हैं,चरित्रवान  हैं।इसलिए युवा पीढ़ी का विश्वास ही हिल (डगमगा) गया है। वह अनुभूति चाहती है। आप कहो कि ईश्वर है तो वह कहती है--दिखाओ,अनुभव कराओ। तो कौन अपनी भावी पीढ़ी को ईश्वर का दर्शन  करा सकता है?कोई भी नहीं करा सकता। युवा पीढ़ी कहती है--ईश्वर है तो उसकी अनुभूति कराओ। बिना अनुभूति के युवा पीढ़ी विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है। और उनके मन में ईश्वर का अस्तित्व अगर बचाना है तो ईश्वर की अनुभूति इस नई पीढ़ी को करानी होगी और अगर हम न करा सके तो परमात्मा से उनका विश्वास ही उठ जाएगा। अगर परमात्मा की धारणा को बचाना है तो धर्म अनुभूति पर आधारित होना चाहिए,पुस्तकों पर आधारित नहीं होना चाहिए। और धर्म का आशय नई पीढ़ी उस ज्ञान से लगा रही है जो ज्ञान मिलने पर मनुष्य  में आमूल परिवर्तन आना चाहिए। धर्म को अपनाने वाला खराब वातावरण में,खराब संगत में रहे तो भी वह सुरक्षित रहे,बुरे कर्म से बचा रहे,यह इस अनुभूति के प्राप्त  होने पर हो सकता है। अनुभूति प्राप्त होने पर मनुष्य में भीतर से परिवर्तन होता है।...

हि.स.यो-४                   
पु-४४४

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी