परमात्मा का माध्यम

"शरीर के विकारों के साथ और शरीर के दोषों के साथ, शरीर की सीमाओं के साथ कभी भी परमात्मा का माध्यम  कोई नहीं बन सकता है। परमात्मा का माध्यम बनने के लिए लिंग, जाति, धर्म, रंग, देश आदि सीमाओं से ऊपर उठना होता है।
ऐसा सामने वाले आकार वाले माध्यम ने किया है। यानी विश्वचेतना का  'माध्मय' जब सामने वाला आकार बना, तब वह उस स्थिति तक पहुँचने के लिए आत्मा बना। और बन पाया है इसलिए केवल एक शरीर के आसपास आज लाखों आत्माओं की सामूहिकता निर्माण हो गई है।
और यही कारण है की उस माध्यम से परमात्मा का चैतन्य सदा बहता ही रहता है। अब जो स्थिति माध्यम ने प्राप्त की है, वह स्थिति एक जन्म में पाना संभव ही नहीं है। इसके लिए जन्मों -जन्मों की तपस्या जरुरी है।"

हि.स.योग.6, पेज.184.

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