वह महाशिवरात्रि के दिन जन्म लेगी
मुझे अचानक मेरे दो बच्चे याद आ गए।मेरी इसी ध्यानसाधना कीधुन में मैं घर के बाहर अधिक रहता था। मेरी पत्नी ही मेरे बच्चों की माँ थीऔर वही उनकी पिता थी।दोभूमिकाएँ वह बेचारी अकेली ही निभाती थी। बच्चों को पिता जीवित होते हुए भी पिता का सान्निध्य कम ही मिल पाया था।लेकिन जब मैं घर में रहता था तो पूरा समय उन्हें देने का प्रयास करता था। क्योंकि भीतर कहीं आत्मग्लानि रहती--कि मैं पिता का कर्तव्य पूर्ण नहीं कर पा रहा हूँ। जब बच्चों को पैदा किया तो उन्हें सँभालना भी अपनी जिम्मेदारी है।मैंने मेरा यह कर्तव्य भी गुरुचरण पर समर्पित कर रखा था। और यद्यपि मैंने उन्हें नहीं सँभाला पर गुरुशक्तियों ने उन्हें बराबर सँभाला था।वे कब बड़े हुए,मुझे पता भी नहीं चला था। मेरे कुछ न करते हुए भी,पता नहीं क्यों जीवन में सबकुछ साथ-साथ होता चल गया।शादी,दो बच्चे....और तीसरी कन्या भी महाशिवरात्रि के दिन आनेवाली थी। मुझे पता नहीं क्यों,पहले से लड़की ही चाहिए थी पर वह कभी हुई नहीं थी।लेकिन इस बार गुरुकृपा से वह इच्छा भी पूर्ण होने वाली थी। गुरुदेव सभी इच्छाओं को पूर्ण करके गुरुकार्य का प्रारंभ करना चाहते थे,ऐसा लग रहा था। मुझे बहनें ही थीं,इसलिए लड़की चाहता था। क्या था,पता नहीं पर हमें लड़की हो,ऐसी मैं प्रतीक्षा कर रहा था। ठीक वैसे ही राह देख रहा था जैसे लोग लड़का होने की राह देखते हैं। गुरुदेव ने कहा था," वह महाशिवरात्रि के दिन जन्म लेगी।" इसलिए मैं तब निश्चिंत था।...
हि.स.यो-४
पु-४५३
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