मैं एक पवित्र आत्मा हूँ और मैं एक शुद्ध आत्मा हूँ।

" यह सदैव याद रखो- आप क्या बनना चाहते हो यह सब आपके हाथ में होता है। आप अपने आपको क्या समझते हो इसी बात पर आपका बनना तय होता है।
अब बचपन से मैं ने एक मंत्र का जाप किया, वह यह है कि  *मैं एक पवित्र आत्मा हूँ और मैं एक शुद्ध आत्मा हूँ।*  यानी इस मंत्र के द्वारा मैं ने सदैव अपने को आत्मा ही माना। इससे क्या हुआ, शरीर का भाव और शरीर के विकार मुझ पर हावी नहीं हुए।
यही कारण है मुझे कुछ भी व्यसन नहीं है।  ठीक इसी प्रकार आप ध्यान करेंगे तो आपके भी व्यसन छूट जाएँगे।
हमारे जीवन में जितनी भी समस्याएँ आती है, वह सब हमारे शरीर से संबंधित ही होती हैं और हम अपने आपको शरीर समझेंगे तो ये समस्याएँ हमें उतना ही अधिक परेशान करेंगी। इसलिए हमें यह मानना है कि हम एक आत्मा हैं।"

हि.स.योग.6'पेज.176.

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