प्रेम पाने की नहीं, देने की चीज है

आज की युवा पीढ़ी प्यार चाहती है,प्रेम चाहती है और उन्हें इस ध्यानपध्दति को अपनाने के बाद महसूस होगा--प्रेम पाने की नहीं,देने की चीज है;प्रेम तो ईश्वर का वह प्रसाद है जो बाँटना है। प्रेम,निर्व्याज प्रेम करो,किसी स्वार्थ से नहीं,किसीभीअपेक्षा से नहीं। आप सभी के साथ प्रेम करो।तो आप देखोगे की जो आप देगे,वही आपको वापस मिलेगा। आप लोगों को प्रेम दोगे तो लोग आपको प्रेम देंगे। प्रेम करना अपना स्वभाव ही बना डालो;आप देखोगे  कि प्रेम आप में से ही बहना प्रारंभ हो जाएगा। जो दोगे, वही आपको वापस मिलेगा। इसलिए, आप जीवन में जो चाहते हैं,वह देना प्रारंभ करो। परमात्मा वही आपको लौटना प्रारंभ कर देगा क्योंकि वह अपने पास तो कुछ रख ही नहीं सकता है!
आज विश्वभर में माता-पिता अपने बच्चों के लिए चिंतित हैं कि बिगड़ते हुए माहौल का असर उनके बच्चों पर न पड़े।वे अपने बच्चों को बिगड़ते हुए माहौल से बचाना चाहते हैं पर बचाने का मार्ग उनके पास नही है।किसी धर्म में अनुभूति नहीं है।सारे धर्म केवल पुस्तकों में,उपदेशों में रह गए हैं।युवा पीढ़ी उपदेश नहीं चाहती,अनुभूति चाहते है और वह अनुभूति ' समर्पण ध्यान ' में है।इसमें कोई उपदेश नहीं है--यह करो या यह न करो।इस में केवल यही कहा गया है--ध्यान करो, सामूहिकता में करो। बस और कुछ नहीं। क्या अच्छा है और क्या बुरा है,उसका ज्ञान आपको आपके भीतर से ही हो जाएगा। प्रत्येक मनुष्य का आत्मदीपक जल उठने के बाद उसे,स्वयं को ही उसके जो-जो दोष हैं,वे दिखते हैं क्योंकि वे दोष उसके पास के ही होते हैं।किसी और को उसके दोष बताने की आवश्यकता नहीं होती है।...

हि.स.यो-४               
पु-४४७

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