मोक्ष यानी एक मुक्त अवस्था

" 'मोक्ष' यानी एक मुक्त अवस्था जो शरीर के विकारों से मुक्ति देति है। मनुष्य को केवल शरीर का ही ग्यान है। तो वह समझता है, यह शरीर के विकारों से मुक्ति केवल शरीर के मृत्यु के बाद ही संभव है। इहलिए वह समझता है- 'मोक्ष' यानी मृत्यु। यह सीधा अर्थ मनुष्य लगता है।.जबकि वास्तव में, मोक्ष और मृत्यु का कोई भी संबंध नहीं है। मनुष्य की मृत्यु हो गई यानी उसे मोक्ष मिला, यह सही नहीं है क्योंकि मृत्यु तो केवल शरीर की हुई है।

अभी आत्मा है, कुण्डलिनी शक्ति बाकी है। उस कुण्डलिनी शक्ति में पूर्वजन्म के कर्मो का हिसाब-किताब बाकि है। और जीवित रहने कीइच्छा बाकी है। और इन्हीं सब बातों के कारण वह मनुष्य मर जाने पर भी मुक्त नहीं होता है।और इन सब बातों के साथ नया शरीर धारण करता है। तो मृत्यु हो जाने पर भी मोक्ष कहाँ मिला? केवल शरीर रुपी वस्त्र को बदला है।

इसलिए शरीर की मृत्यु कभी भी मोक्ष नहीं होती है। 'मोक्ष' तो ध्यान की चरम सीमा है जो केवल अपने गुरु को ही परमात्मा मानकर प्राप्त की जा सकती है। क्योंकि अकेले मोक्ष पाना बडा कठिन है। यह मोक्ष की स्थिति पाने पर कोई मनुष्य का भूतकाल नहीं रह जाता और न कोई भविष्य रह जाता है। मनुष्य एक 'दिव्य आनंद' की अनुभूति प्राप्त करता है। उसका शरीर तो सबमें होता है लेकिन वह आत्मा से किसी में भी नहीं होता।"

हि.स.योग,6-पेज.67.

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