सामूहिकध्यान ही एकमात्र मार्ग

इस प्रकार,इस कार्य से कौनसी आत्माएँ लाभान्वित होंगी, यह भी निश्चित है। वे अंततः इस ज्ञान तक पहुँच ही जाएँगी। अब वे तुम्हारे जीवनकाल में जुड़ती है,यह देखना भी तुम्हारा ही कार्य है।यह कार्य बहुत बड़ा है और जीवनकाल छोटा है।इसलिए यह कार्य तो जीवनकाल के बाद भी तुम्हें ही करना है। तुम्हें अपना कार्य सौंपकर सभी गुरु निश्चिंत हो गए हैं।तुम्हारे कार्य के साथ इनकी मुक्त्ति जुड़ी हुई है क्योंकि ये भी अपने दिए हुए आश्वासनों से बँधे हुए हैं।वे उनके शिष्यों को तुमसे जोड़ते जाएँगे और वे मुक्त्त होते जाएँगे।तुम तो एक विशाल सागर का रूप लेने वाले हो जिसमें कई छोटी-छोटी नदियाँ आकर मिलने वाली हैं।और नदियाँ सागर में आकर मिल जाती हैं और सागर का रूप ले लेती हैं।यह कार्य समाज में सामूहिकता में ही करना ताकि प्रत्येक आत्मा संतुलित रहकर ही आगे बढ़ सके।और वैसे भी समाज के वातावरण में सामूहिकध्यान ही एकमात्र मार्ग है।
मैंने महसूस किया कि मेरा सारा शरीर ही ठण्डा हो गया था। आसपास के पक्षियों की आवाजों के साथ-साथपहाड़ों से टकराकर आने वाली तेज हवा से जो एक विशिष्ट ध्वनि निर्मित हो रही थी,वह भी सुनाई दे रही थी।मेरे सहस्रार चक्र पर एक बड़ा-सा कमल खिल गया और उस कमल की हजार पँखड़ियाँ थीं।और प्रत्येक पँखड़ी से रस निकलकर मेरे सहस्रार से बह रहा था और एक-एक बूँद नीचेआ रही थी। उसके नीचेआने का ऐहसास भी मुझे हो रहा था। मैं वहाँ कब से बैठा था,जब उठा तो शाम हो गई थी।
उस दिन सुबह मेरी नींद कबूतरों के बच्चों की आवाज से खुली थी। मेरी गुफा के अंदर रहने वाले कबूतर के अण्डों में से बच्चे भी निकल आए थे और वे आवाजें कर रहे थे। उस दिन दो हमारी गुफा में दो नए मेहमान आए थे जो अपनी छोटी-छोटी चोंच के द्वारा चिल्लाकर,आवाजें निकालकर उनके आगमन की सूचना मुझे दे रहे थे और मानो एक तरफ मुझे संकेत भी दे रहे थे-- काफी समय यहाँ पर व्यतीत कर लिया ;चलो,अब यहाँ से घर वापस जाओ!...


हि.स.यो-४                    
पु-४५२

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी