समर्पण ध्यान का रथ
" 'समर्पण ध्यान का रथ' दो पहियों पर ही चलता है-एक है *'नियमितता'* और दूसरा है *'सामूहिकता'*। अगर आप ईस रथ में सवार होते हो तो इन दो बातों को अपने जीवन में अपनाना ही होगा। आपको नियमित ध्यान करना होगा और आपको सामूहिकता में ध्यान करना होगा।
नियमितता से हमारा शरीर ध्यान करने का अभ्यस्त होता है। क्योंकि पहले तो शरीर की बाधाएँ आती हैं। सतत नियमित रुप से ध्यान करके हम अपनी प्रगति कर सकते हैं।
सुबह का ध्यान आपका अकेले में अपनी आत्मा के साथ होना चाहिए। आप अपनी आत्मा के साथ जितना संपर्क करोगे, उतना ही आपके भीतर आत्मभाव बढेगा।
यह सब कैसे होता है, यह बताता हूँ। हमारा चित्त एक खाद के जैसा होता है। हम उसे जहाँ डालते हैं, वह वहाँ बढता है। अगर हम हमारे चित्त को आत्मा पर रखेंगे तो वह आत्मा को सशक्त करेगा और आत्मा सशक्त होगी। तो आत्मा का भाव ही वृद्धिगत हैगा। वैसे भी आत्मभाव बढाना ही ध्यान मार्ग का उद्देश होता है।"
हि.स.योग,6-पेज. 86.
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