Samarpan Meditation Quotes

" जीवन में झुकना सिख जा, ऊँचायी ख़ुद ब ख़ुद मिल जाएगी। "
 बाबा स्वामी
 HSY 1 pg 179

" सारी मनुष्यता का एक ही धर्म है- मानवधर्म। और एक ही भाषा लगती हाई- प्रेम की भाषा। "
बाबा स्वामी
HSY 6 pg 179

"मैं न तुम्हारा गुरु हूँ और न तू मेरे शिष्य हो। हम सब समान है , एक जैसे हैं। मैं जैसा हूँ, वैसा का वैसा मैं तुम्हें बनाने आया हूँ। "
 बाबा स्वामी

 "गुरुदेव, आपने मेरे पात्र में जो शक्तिरुपी तेल डाला है, उससे मैं जीवनभर जलता रहूँ, यही आशीर्वाद दीजिए।" हि.स.यो.१/४८७

"परमात्मा तो सर्वत्र, वर्तमान मे बहने वाली चेतना शक्ति है, वह तो सर्वव्यापी है और निराकार स्वरूप मे है। "
 बाबा स्वामी
 HSY 6 pg 240

"हे ईश्वर ! ये जो भी कुछ चल रहा है आप जानते हो ! इस परिस्थिति में मैंने क्या करना चाहिए वह भी आप ही जानते हो ! आप मुझसे वह करवा लो , जो मैने करना चाहिए । "
पुज्या गुरुमाँ
॥ माँ ॥ पुष्प २--८९

" करूणा होना , न होना, मनुष्य की ग्रहण करने की क्षमता पर निर्भर होता है। क्यूँकि किसी सदगुरु की करूणा को प्रयत्न से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। करुणा तो करुणा है, करुणा बस स्वयं ही हो जाती है। "
 बाबा स्वामी
HSY 1 pg 240


" मैं बड़ा सूक्ष्म भाव है । स्वयं को तो यह कभी पता नही चलता है । मै का अहंकाररुपि राक्षस सभी में होता है । "
 आध्यात्मिक सत्य
पूज्य गुरुदेव 21/2/2007

" हमारी आध्यात्मिक प्रगति भी निर्भर करती है, हम किनके साथ है। प्रायः देखा गया है, अच्छे लोगों के साथ सदैव अच्छे लोग ही रहते है। " 
बाबा स्वामी
HSY 6 pg 310

" मैं न तुम्हारा गुरु हूँ और न तू मेरे शिष्य हो। हम सब समान है , एक जैसे हैं। मैं जैसा हूँ, वैसा का वैसा मैं तुम्हें बनाने आया हूँ। "
बाबा स्वामी  


" जब आपके पास दूसरों के लिए कुछ करने की इच्छा हो, पर दूसरों को देने के पर्याप्त साधन न  हों, तो ऐसे समय अपनी सद्भावना दूसरों तक पहुँचाने का मार्ग प्रार्थना है। "
 बाबा स्वामी

" आध्यात्मिकता एक मकान है और सभी धर्म इसके रास्ते है। और प्रत्येक मनुष्य को प्रत्येक धर्म ने यह समान अवसर प्रदान किया है। " 
बाबा स्वामी
HSY 6 pg 285

" शिकायत करने वाले प्रायः अतृप्त आत्मा होती है । वह प्रत्तेक स्थिति मे अतृप्त ही होगी । "
- आध्यात्मिक सत्य

" सभी धर्मों का सार एक ही है -अपने भीतर के मनुष्यधर्म को जगाओ । बाहरी धर्म के चोले कितने ही बदल ले,कुछ नही होता ,जब -तक भीतरी आत्मधर्म -मनुष्यधर्म जागृत नही होता। "
बाबा स्वामी
आध्यात्मिक सत्य
24/12/2017


" केवल आत्मा के संगत में रहकर भी हमें अगर अच्छा लगता है तो कल्पना करो की आप 30 मिनट आत्मा के ऊपर ही चित्त रखकर बैठोगे तो कितना आनंद आएगा ! "
बाबास्वामी
15/01/2015

" हमारा अपना घर तो " आत्मधाम " है जिसे संतों ने "नीजधाम " कहाँ है । इस "नीजधाम " में आप दिनभर में आधा घंटा तो भी समय अवश्य रहे । इसमें के 20 मिनट आपको भीतर जाने में लगेंगे और आखिरी के 10 मिनट में आप मुझे अपने साथ पाएँगे । "
बाबास्वामी 
15/01/2015

" इस विश्व में परमात्मा तो कण कण में ही फैला है | आपको कहा अनुभव होता है ,वह महत्त्वपूर्ण है |- परमात्मा किसे मानना है ये आत्मा का शुद्ध भाव है | बस,आत्मा जिसे मान ले ,वही परमात्मा है | "
हि.स.यो.२/३२ 

" अंतर्मुखी होने से दो लाभ है- एक ओर हमें हमारे दोष दिखते है और वे दूर होते है। दूसरा, हमारा चित भीतर रहने से प्रभावशाली बनता है। "
बाबा स्वामी
HSY 6 pg 321

" समाधान को बाहर खीजोगे, भटकोगे तो जीवन में समाधान बाहर कभी नहि मिलेगा। और समाधान को बाहर नहि खोजोगे और भीतर जाओगे तो समाधान की बरसात होगी। "
बाबा स्वामी
HSY 1 pg 246


" जीवन में झुकना सिख जा, ऊँचायी ख़ुद ब ख़ुद मिल जाएगी। "
बाबा स्वामी

" विश्वशान्ति कभी किसी पुस्तक से नही , किसी क़ानून से नही ,किसी बंदूक से नही आ सकती है विश्वशान्ति आ सकती है तो वह मनुष्य के हृदय से आत्मा से स्वयं से आ सकती है। "
शिरडी महाशिबिर 2013


" कई बार कई प्रश्नो के उत्तर समय के साथ साथ ही मिल जाते है। "
Hsy 6 pg 349

" हमारी विनम्रता हममेँ लचीलापन लाती है । लचीलापन जीवन को बल प्रदान करताहै । भूकंप आने पर फौलादी इमारतेँ ढह जाती हैँ किन्तु बांस के बने घरअपने लचीलेपन के कारण बच जाते है । "
पुजनीया गुरुमाँ

" शारीरिक  प्रयत्न  से  गुरुकृपा  नही  होती  है । गुरुकृपा  एक  ईश्वरीय  ऊर्जा  है । वह  आपके  आत्मा  के  सुपात्र  होने  पर  ही  होती  है । "
ही स यो
1/149


" सदगुरु के साथ सदैव अच्छे आत्माओं की , प्रगति किए हुए आत्माओं की एक बड़ी सामूहिक शक्ती होती है। और उस प्रगति किये हुए आत्माओं के सान्निध्य मे रहकर कोई भी मनुष्य अपनी प्रगति कर सकता है। "
बाबा स्वामी
HSY 6 pg 335-336


" आत्म साक्षात्कार " के बाद भितर की यात्रा प्रारंभ होती है।  पूर्व जन्म " की " साधना " इस जन्म में काम आती है। "
बाबा स्वामी
१८/९/१५

" मोक्ष याने प्रकृति के साथ समरसता स्थापित करना है। "
बाबा स्वामी
HSY 6 pg 332

" हमारे साथ हुए दुर्व्यवहार से उपजा क्रोध , हमारे सकारात्मक विकास का आधार बन सकता है । "
वन्दनीय पूज्या 


" सामूहिकता 'सद्गुरु' की कृपा की 'छत्री' है।
   सामूहिकता की छत्री में सुरक्षित रहो, कोई भी कार्य करो तो सामूहिकतता में ही करो। "
 बाबा स्वामी
 आत्मेश्वर


" संपूर्ण सकारात्मक विश्वचेतना का नाम ही परमात्मा है। "
बाबा स्वामी


" सदगुरु के साथ सदैव अच्छे आत्माओं की , प्रगति किए हुए आत्माओं की एक बड़ी सामूहिक शक्ती होती है। और उस प्रगति किये हुए आत्माओं के सान्निध्य मे रहकर कोई भी मनुष्य अपनी प्रगति कर सकता है। "
बाबा स्वामी
HSY 6 pg 335-336

" ध्यान करना यानी अपने अस्तित्व को शून्य कर देना । आप जब स्वयं शून्य हो जाते हो ,समूचे विश्व का ही एक हिस्सा बन जाते हो ,और फिर विश्व में क्या हो रहा है ,वह जान सकते हो । "
ही.का.स.योग ५/१११

"  दिशा  तो एक ही हो सकती है  बाहर या भितर। बाहर दिशा  वाले अनेक है। भीतर की दिशा देनेवाला एक ही है। वह है, सद्गुरु यह मेरा निजी अनुभव है। "
बाबा स्वामी
२६/८/१५

" आध्यात्मिक क्षेत्र में गुरुसान्निध्य का समय जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय होता है। पर एसा सान्निध्य का समय साधक को उसके पुर्व कर्म के अनुसार ही प्राप्त होगा। यह साधक के जीवन का सुनहरा पल होता है। प्रायः देखा गया है, जीवन में सुनहरे पल कम ही रहते हैं। "
बाबा स्वामी
हि.स.यो.१/९१


" सारी आध्यात्मिक स्थिति आत्मीयता पर ही निर्भर होती है। प्रयत्नो का कोई स्थान नहीं है क्यूँकि प्रयत्न शारीरिक स्तर के होते है। "
बाबा स्वामी
HSY 1 pg 293

" आनंद वह अनुभूति हे, जो अमुल्य हे, इसे बाजार में ख़रीदा नहीं जा सकता हे। "   
बाबा स्वामी

" प्रत्येक साँस को सकारात्मक रूप में जिएँ"।  दूसरों में चित्त डालकर चित्त गंदा बिल्कुल ना करें क्योंकि फिर चित्तशुद्धी के लिए कई क्षण खराब करने होंगे । "
- आध्यात्मिक सत्य *(पवित्र ग्रंथ)* 


" एकांत के समय मनुष्य अपनी आत्मा के साथ होता है। वह आत्मा ही है जो सदैव मनुष्य के साथ रहती ही है,  चाहे वह शरीर से किसी भी अवस्था में रहे। "
बाबा स्वामी
HSY 1 pg 315

" अपने अंदर के अहंकार को एक सही दिशा देना ही पुरुषार्थ होता है। उसे भीतर की ओर लेकर जाना चाहिए। अपने-आपको जानने के लिए उसका उपयोग होना चाहिए। इससे उसका सही इस्तेमाल होगा और दूसरी ओर उस पर नियंत्रण भी हो जाएगा। "
हि.स.यो.३/१५४


" अनन्य भक्ति महत्वपूर्ण है। जब तक भक्ति की धारा को एक स्थान पर न केंद्रित किया जाए, तब तक हम परमात्मा को नहीं पा सकते है। "
बाबा स्वामी
HSY 2 pg 42

" आत्मधर्म जागृत होने के बाद हमारी आत्मा ही हमारी 'गुरु 'बन' जाती है । फिर जीवन में "क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए "का संपूर्ण ज्ञान स्वयं से ही मिलने लग जाता है । "
बाबा स्वामी
मनुष्य धर्म,आध्यामिक सत्य


" जिनके जीवन में अंधेरा दूर होनेवाला होगा, वे लोग तेरी बात को समझ सकेंगे., जिनके जीवन मेंं तब भी अंधेरा ही रहनेवाला होगा, वे तेरी बात नहीं मानेंगे। "
हि.स.यो.३/१३४


" जब सद्गुरु कोई भी बात बार-बार कहे , इसका अथॅ है कि सद्गुरु जितनी गंभीरता से कह रहा है , साधक उतने गंभीरता से नहीं सुन रहा है। "
- आत्मेश्वर (आत्मा ही ईश्वर है ) Page No. 16

" सदगुरु के साथ सदैव अच्छे आत्माओं की , प्रगति किए हुए आत्माओं की एक बड़ी सामूहिक शक्ती होती है। और उस प्रगति किये हुए आत्माओं के सान्निध्य मे रहकर कोई भी मनुष्य अपनी प्रगति कर सकता है। "
HSY 6 pg 335-336


" अब रही बात अपने बच्चों की और परिवार की तो मैं तो सर्वस्व गुरुचरण में रखकर की कार्य कर रहा हूँ। इसलिए सब जवाबदारी उनकी है , यही समझकर मैं निश्चित रहता हूँ। और इसी कारण  मैं बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं करता । "
भाग ६ -१३९

" मनुष्य अनावश्यक विचारों के जाल में उलझा रहता है, इससे छुटकारा केवल ध्यान ही दिला सकता है। ध्यान करने से बुराईयाँ स्वतः ही हटने लगती है। और अच्छाई वृद्धिगत होने लगती है। "
मधुचैतन्य अक्टू.२००९/२८

" प्रकृति का नियम है - बनाना और बिगड़ना     । वास्तव में ,  बिगड़ना भी सदैव बनाने के लिए ही होता है। "
 बाबा स्वामी
HSY 2 pg 94 

" गुरू से बड़ा गुरूकार्य है।गुरूकार्य करने से गुरू शक्तीयाँ जागृत हो जाती है। साधक जब गुरूकार्य करता है तो गुरूशक्तीयाँ उस की छोटी बड़ी आवश्यकताओं का ध्यान रखती है। "
मधुचैतन्य अक्टू.२००९/२७

"  गुरूवर ने जब अपना नाम ही गुरूमंत्र के रूप में दिया है तो वे स्वय:उसका भार वहन करते है। गुरूमंत्र साधारण मंत्र नही है। इस में ८०० वर्षों के वाइब्रेशन है एवं सभी गुरूतत्वों का भाव उस में जुड़ा है। "
*मधुचैतन्य अक्टू.२००९/२७* 

" गुरू तक पहुँचने से पहले का जीवन व्यर्थ रहता है। गुरू मिलने के बाद ही हमारा आध्यात्मिक जीवन प्रारंभ होता है। "
मधुचैतन्य अक्टू.२००९/२६ 

" यह जो मनुष्य का विश्वास होता है न, यही उसके आसपास एक आभामंडल का निर्माण करता है। वह अपने आसपास विश्वास का आभामंडल बनाता है और वही विश्वास मनुष्य को बचाता है। पर विश्वास संपूर्ण होना चाहिए। "
हि.स.यो.३/१८०

" अपना आत्मदीपक जलाने के लिए पहले मनुष्य को शांत वातावरण की आवश्यकता होती है ताकि मनुष्य अपने भीतर जाँक सके, अपनी आत्मा का अहसास कर सके, अपनी आत्मा के महत्व को समझ सके और अपनी आत्मा के सान्निध्य में जा सके। "
बाबा स्वामी
HSY 1 pg 327

" हमारे जीवन में हमको संत-संग , सान्निध्य कितना मिला उसको कोई मायना नहीं है। मायना है हमने कितना ग्रहण किया। हमने कितना प्राप्त किया , कितना आत्मसात किया। आत्मसात का अर्थ है हमारे में कितना बदलाव आया , हमारे अंदर कितना चेंज आया।"
पूज्य गुरुदेव
मधुचैतन्य अक्टूबर २००९

" जीवन में जीवंत गुरु का मिलनामात्र भी एक बडी घटना है। और हम उसके केवल सान्निध्य में भी रहे, तो भी एक दिन स्नान हो जाएगा। "
हि.स.यो.३/२०१

" सूर्योदय के महत्व को बताते हुए पू.स्वामीजी ने बताया कि इस समय उर्जा उर्ध्वगामी होती है। सोर्योदय के १५ मिनिट पहले और १५मिनिट बाद तक ध्यान करने से अद्भूत लाभ होते है। "
 मधुचैतन्य अक्टू.२००९/२६

" हमारे जीवन में हमको संत-संग , सान्निध्य कितना मिला उसको कोई मायना नहीं है। मायना है हमने कितना ग्रहण किया। हमने कितना प्राप्त किया , कितना आत्मसात किया। आत्मसात का अर्थ है हमारे में कितना बदलाव आया , हमारे अंदर कितना चेंज आया। "
पूज्य गुरुदेव
मधुचैतन्य अक्टूबर २००९

" चैतन्य की अलग भाषा है। एक बार वह भाषा सिख गये, तो फिर पुस्तक की भाषा समजने की आवश्यकता नहीं है। "
बाबा स्वामी
HSY 2 pg 63 

" आप का सम्बन्ध मेरे सूक्ष्म शरीर से स्थापित होने पर आपके हाथो से चैतन्य का प्रवाह प्रारंभ हो जायेगा, आपको चैतन्य अनुभव हो रहा हे, तो में साथ में ही हु। " 
बाबा स्वामी

" आत्मा को सदगुरु से आत्मा साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद वह आत्मा की माँ भी हे और बाप भी हे। "
बाबा स्वामी

" शिष्य की गुरु से आत्मीयता होनी चाहिए । आत्मीयता होगी श्रद्धा से । ...आत्मीयता होने पर ही गुरु की बात उसी अर्थ में समझी जा सकती है , जिस अर्थ में गुरु बोल रहा है । "
ही.का.स.योग [ १ ]


" मनुष्य ने अपनी प्रगति निसर्ग से ज्ञान लेकर की है । कुछ बाते निसर्ग से सीखी तो कुछ बाते पशु और पक्षियों से सीखी है । ये सब जैसे -जैसे मनुष्य की बुद्धि विकसित होती गई , होता रहा है । फिर उसे पंचमहाभुतों का ज्ञान हुआ और फिर उसने" जाना "की पंचमहाभुतों से मनुष्य का निर्माण हुआ है। "
आत्मेश्वर २६


" जिसे गुरूछत्र मिल गया, उस पर ग्रह- नक्षत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है। "
बाबा स्वामी
HSY 1 pg 365

" ' गुरु ' शिष्य का माँ भी है और बाप भी है । इसलिए प्रत्येक शिष्य का कतॅव्य है कि वह ऐसा कोई कायॅ न करे जिससे माँ - बाप समान उसके गुरु की बदनामी हो। "
Page No . 33
विवाह का प्रश्न
पवित्र आत्मा 



" हम  साधकों  की  स्थिति  भी  स्वर्णमूर्ति  की  तरह  ही  है । समय  तथा  परिस्थिति  की  मिट्टी  ने  आत्मा  की  स्वर्णमूर्ति  को  ढाँके  रखा  है । भूतकाल  रूपी  मिट्टी  के  आवरण  से  जब  आत्मा  मुक्त  होगी  तभी  आत्मा  रूपी  स्वर्णमूर्ति  अपने  सत्य  रूप  को  प्राप्त  करेगी । "
वंदनीय पूज्या गुरुमाँ 

" अहंकार बहुत सूक्ष्म रूप में रहता है और वह कब चोला बदल लेता है , कब रंग बदल लेता है , कब रूप बदल लेता है वह अपनेको पता नही लगता है । कहीं ऐसा तो नही की अहंकार ने । साधक का चोला पहन लिया हो ? "
   पूज्य गुरुमाऊली
   चै.स.ध्या.महाशिविर  २००६


" धर्म परमात्मारूपी मकान तक पहुँचने की सीढ़ी है। सीढ़ी पर ही बैठे सोचेंगे कि मकान तक पहुँच गये , तो वह सही नहीं है। उस मकान पर समर्पण ध्यान से पहुँचा जा सकता है। "
         ----- बाबा स्वामी

" आमसुख तो आत्मा की वह पूर्ण समाधान की "अनुभूति "है जो मनुष्य को "मोक्ष की स्थिति "मिलने के बाद ही होती है और यह अनुभूति मनुष्य की आत्मा "स्वयं प्रगट होकर कराती है । आपका आपके आत्मा के प्रति पूर्ण समर्पण हो जाता है और शरीर की आत्मा के साथ इतनी समरसता हो जाती है की "आत्मा "स्वयं आपके सामने "प्रगट होकर आपको मार्गदर्शन करती है । "
आत्मेश्वर . . .

" आचार्यों को नियमित ध्यान करना चाहिए। अगर उनकी खुद की स्थिति ठीक नहीं होगी , तो सेंटर की भी स्थिति खराब हो सकती है। "
      ---- बाबा स्वामी
           १२ मई २००६

" मनुष्य कानून को बनाता है और मनुष्य ही कानून को तोडता है , उसमें से रास्ता भी खुद ही निकालता है। मनुष्य को सुधार सकता है तो सिर्फ मनुष्य , और कोई नहीं। पूरा समर्पण ध्यान इस सिद्धांत पर आधारित है। *ध्यान के जरिये अपने आप में बदलाव लाना है। "
*मधुचैतन्य अप्रैल २००६/३४*

" धर्म परमात्मारूपी मकान तक पहुँचने की सीढ़ी है। सीढ़ी पर ही बैठे सोचेंगे कि मकान तक पहुँच गये , तो वह सही नहीं है। उस मकान पर समर्पण ध्यान से पहुँचा जा सकता है। "
बाबा स्वामी

" गुरू के साधारण रहन सहन के कारण उसे साधारण समझने की भूल नहीं करनी चाहिये। वह परमात्मा और हमारे बीच की कड़ी है। माध्यम है। वह परमात्मा है। "
*मधुचैतन्य अक्टू.२००९/२६*


" मैं ही ब्रह्म हूँ। यह भाव मुझमे स्थापित हो गया हे। वही भाव आप सभी में भी स्थापित हो जाये तो आप और मेरे बीच का अंतर ही समाप्त हो जाये, तो रह जाये तो केवल ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म "
बाबा स्वामी

“ आत्मा के बिना जिस शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं हे, ऐसे शरीर का ही हम जीबन भर अहंकार रखते हे। आत्मा है तो जीवन में सब कुछ है, आत्मा नहीं तो जीवन ही नहीं हे। "
बाबा स्वामी

“ आत्मा के बिना जिस शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं हे, ऐसे शरीर का ही हम जीबन भर अहंकार रखते हे। आत्मा है तो जीवन में सब कुछ है, आत्मा नहीं तो जीवन ही नहीं हे। "
बाबा स्वामी

" सद्गुरु वह रास्ता है जिससे उच्च आध्यात्मिक स्थिति की मंजिल प्राप्त की जा सकती है। पर सद्गुरु मंजिल नहीं है। इसलिए सद्गुरू के शरीर को ही चिपककर मत बैठो । सद्गुरु के सान्निध्य में रहनेवाली सामूहिक चैतन्यशक्ति का उपयोग करो और आगे बढ़ो। "
*॥आध्यात्मिक सत्य॥*

" प .पू .स्वामीजी ने अपना एक और उद्देश्य बताया कि वे समाज में स्वस्थ्य व योग्य माता पिता का निर्माण करने के लिए भी आये है। एक जागृत पिता और आत्मसाक्षात्कारी माता के मिलन से अच्छी व योग्य आत्मा प्रकट हो सकती है जो समाज का कल्याण कर सकती है। "
*मधुचैतन्य अक्टू.२००९*

" मैं किसी भी मनुष्य की जीवन की सफलता के लिए यह देखता हूँ , उसके माँ-बाप उससे प्रसन्न है या नहीं क्योंकि वह उनकी निर्मिती है।  अगर उसका 'निर्माता' ही उससे प्रसन्न न हो , तो उस जीवन की क्या सफलता! "
*आत्मेश्वर/६४*

" आप कितनी पूजापाठ करते हो , कितना कर्मकांड करते हो , उसको कोई मायना नहीं है। मायना है कि आपका चित्त कितने समय प्रभुचरण में रहता है , आपका चित्त कितने समय शून्य अवस्था में रहता है , कितने समय पवित्र अवस्था में रहता है ? "
*मधुचैतन्य अप्रैल २००६/ ३५*

" चित्त का खेल साँप-सीढ़ी के खेल जैसा है। चित्त शुद्ध करने में दिन लगते हैं और गंदा होने में एक क्षण हीं काफी हैं।" 
       ----- *बाबा स्वामी* (आत्मेश्वर ६२)

" अपने  घर  तक  पहुँचने  का  मार्ग  " सद्गुरु " रूपी  द्वार  से  ही  जाता  है । "
बाबा स्वामी
१३/१०/२०१७

" जीवन में चित ही सबकुछ है, मनुष्य को उसे सदैव सम्भालकर रखना चाहिए। "
बाबा स्वामी
HSY 2 pg 206

" आध्यात्मिकता का कमल खिलने के लिए सद्गुरुरूपी कमल ही चाहिए । जबतक जीवन में कमल नही आता ,कमल बनने की चाहत जीवन में निर्मित नही हो सकती है । "
ही.का.स.योग...२/२८७ .......

" वर्तमान में रहकर ही साधक आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है। वर्तमान में रहने के लिये बहुत ऊर्जा की आवश्यकता होती है। और यह ऊर्जा सामूहिकता से मिलती है। सद्गुरु स्वयं तो सामान्य रहते है पर उनके साथ असाधारण शक्ति रहती है , विशाल सामूहिकता रहती है। "
*मधुचैतन्य अक्टू.२००९/२७*

" जीवन में चित ही सबकुछ है, मनुष्य को उसे सदैव सम्भालकर रखना चाहिए। "
बाबा स्वामी
HSY 2 pg 206

" सद्गुरु वह रास्ता है जिससे उच्च आध्यात्मिक स्थिति की मंजिल प्राप्त की जा सकती है। पर सद्गुरु मंजिल नहीं है। इसलिए सद्गुरू के शरीर को ही चिपककर मत बैठो । सद्गुरु के सान्निध्य में रहनेवाली सामूहिक चैतन्यशक्ति का उपयोग करो और आगे बढ़ो। "
*॥आध्यात्मिक सत्य॥*

" समर्पण ध्यान आत्मजागृति कराता है। आत्मा और शरीर का भेद बताता है। देह पर आत्मा का नियंत्रण सिखाता है। और इस प्रक्रिया में करने और नहीं करने के ज्ञान की ज़रूरत नहीं रहती। बुरा अपने आप छूट जाता है। और आत्मा रह जाती है। "
*मधुचैतन्य अक्टू.२००९/३३*










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