आप अपने - आपको केवल आत्मा मानो
अपने - आपको गुरु मानना नहीं है और अपने - आपको शिष्य मानना नहीं। आप अपने - आपको केवल आत्मा मानो तो आपका यह गुरु और शिष्य का भेद भी समाप्त हो जाएगा। यह गुरु और शिष्य का भेद भी बाहरी है , अंदर से तो हम दोनों एक ही हैं। मुझसे अगर आदर से मिलना हो तो आप अपने - आपको मोलो , आप मुझसे मिल जाओगे। आज के बाद अगर आपको मुझसे मिलना है तो अपने-आपको जानो तो अपने-आप में ही मुझे पाओगे। मैं आपसे अलग थोड़े ही हूँ ! जो अंतर है , वू अंतर है वस्त्र का। यह शरीररूपी वस्त्र अलग-अलग है। मेरा वस्त्र पवित्र है , निर्मल है , स्वच्छ है। इतना पवित्र है कि उस वस्त्र का होना कोई मायना नहीं रखता। उस वस्त्र के पार भी देखा जा सकता है आपका वस्त्र को पवित्र और स्वच्छ करना है। अगर ऐसा करने में आप सफल होंगे , उसी दिन आप अनुभव करोगे की आप और मैं अलग नहीं है। फिर आना क्या और जाना क्या! उसका कोई अंतर नहीं होगा।
भाग - ६ -११३
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