धर्म केवल पुस्तकों में सिमटकर रह गया है
हमारी युवा पीढ़ी नास्तिक नहीं है,पर धर्म केवल पुस्तकों में सिमटकर रह गया है,ऐसा देखकर वह उसे निर्जीव समझ रही है। आज की पीढ़ी अपनी शिक्षा में ज्ञान का जैसा अनुभव करती है,वैसा अनुभव धार्मिक शिक्षा में नहीं होता। उन्हें दिखता है कि नए-नए आविष्कार हो रहे हैं,समय के साथ-साथ भौतिक क्षेत्र आगे बढ़ रहा है लेकिन आध्यात्मिक क्षेत्र वहीं -का -वहीं है।इसमें भी प्रगति हुई है लेकिन वह केवल इस हिमालय में ही सिमटकर रह गई है।एक गुरु अपने पूरे जीवन में एक ही की जागृति कर सकता था और वह जागृति करके प्राणत्याग कर देता था,यह धार्मिक पुस्तकों में भी लिखा हुआ है। लेकिन समाज को यह नई जानकारी नहीं है कि एक मनुष्य लाखों लोगों की जागृति कर सकता है,फिर भी जीवित रहता है। यह आध्यात्मिक क्षेत्र में हुआ आविष्कार है,यह गुरुतत्व की प्रगति है।इस प्रगति की जानकारी सामान्य-से-सामांयमनुशय तक पहुँचने की आवश्यकता है। गुरुशक्त्तियों की सदैव इच्छा रहती है कि वह जो भी पाए,वह सब लोगों में बाँटे। इस,अनुभूति के ज्ञान को भी गुरुशक्त्तियाँ समाज में बाँटना चाहती हैं। विशेष रूप से आज की युवा पीढ़ी को अनुभव कराना चाहती हैं कि परमात्मा आज भी विद्यमान है,उसे अनुभव किया जा सकता है। उससे जुड़ने पर मनुष्य में आमूल परिवर्तन आता है।...
हि.स.यो-४
पु-४४५
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