हे परमात्मा,तेरी सारी कृपा स्वीकार है ।
हे परमात्मा,तेरी सारी कृपा स्वीकार है । फिर उस कृपा का माध्यम कुछ भी हो,सब स्वीकार है । हाँ , मैं कभी कुछ माँगूँगा नही औऱ न ही कुछ पाने की इच्छा करूँगा । औऱ मैने तुझसे कभी नही माँगा हो औऱ न मैने कभी किसी वस्तु की इच्छा की हो औऱ फिर वह मिल जाए , तो परमात्मा की कृपा का प्रसाद ही है , यह समझकर स्वीकार ही करूँगा । एक बार तुझे समर्पण कर देने के बाद अस्वीकार करने का "मैं "का अधिकार ही नही रह जाता है । तेरी करुणा में , तेरी कृपा में सब स्वीकार है।
ही.का.स.योग.२/१९०
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