आज भी प्रत्तेक साधक की नस -नस को जानता हूँ
"आज भी प्रत्तेक साधक की नस -नस को जानता हूँ , फिर भी मुझे कुछ ज्ञान नही है यही प्रदर्शन करता हूँ । अन्यथा मेरे सामने कोई साधक ही नही आएगा । क्योकि साधक कितने ही बुरे हो ,मैने उन्हे अपनाया है । वह मेरे है , जैसे भी है । औऱ मुझे उन्हे लेकर चलना है । एक अंश के रूप में मैं प्रत्तेक साधक के भीतर ही बैठा हूँ । वह अंश उस साधक की प्रत्तेक खबर देते रहता है , यह बात साधक नही जानते है । जिस दिन आत्मसाक्षात्कार उन्होंने प्राप्त् किया , उसी दिन से यह अंतरंग संबंध स्थापित हो गया है ।
परमपूज्य श्री गुरुदेव
मधूचैतन्य न.दी.२०१७
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