आत्मज्ञान का सूर्योदय
बाद में वे लोग छोड़ेंगे जो अपने घरों के दरवाजें, खिडकियाँ बंद रखकर बैठे होंगे। तो सूरज उगा होगा लेकिन वह बाहर उगा होगा। अपने घर के दरवाजे-खिड़कियाँ तो उन्होंने भीतर से ही बंद करके रखी होंगी। लेकिन कुछ दिनों के बाद उन्हें भी पता चलेगा--हम सोच रहे हैं कि रात है लेकिन वास्तव में रात नहीं है।रात है ऐसी गलतफहमी हम पाले हुए हैं।वास्तव में ,सूर्य-उदय हो ही गया है क्यो की हमारे पड़ोसी के घर में तो उजाला देखकर उन्हें भी लगेगा कि उनके घर में भी उजाला होना चाहिए।तो वे अपनी गलत -धारणा-रूपी खिडकियाँ भी खोलेंगे,अपनी गलत मान्यताओं
के दरवाजे भी खोलेंगे।तो वे भी पाएँगे कि जैसा उजाला पड़ोसी के घर में था,वैसा ही उजाला उनके घर में भी हो गया है। और, क्या अच्छा है और क्या बुरा है,इसका ज्ञान उन्हें भी सूर्य के प्रकाश में होने वाला है। अब समूचे घर में प्रकाश-ही-प्रकाश हो गया है,ऐसा उन्हें देर से अनुभव होगा। यानी अनुभव होगा लेकिन आसपास के सभी लोगों को होने के बाद होगा। क्योंकि वे उनके ही दरवाजे-खिड़कियाँ खोलने में अधिक समय लगाएँगे। लेकिन आज नहीं तो कल,सारी ही मनुष्यसमाज इस आत्मज्ञान के सूर्योदय को महसूस करेगा।...
हि.स.यो-४
पु-४४८
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