चैतन्य का सानिध्य

      मेरे साधनारत काल की औऱ आज के साधक की स्थिति का अवलोकन करता हूँ , तो लगता है , हम जब गुरुदेव के सानिध्य मे जाते थे , हमारा चित्त कभी भी उनके शरीर के ऊपर नही होता था । सदैव हम शरीर से परे जो शक्तियाँ होती थी , उनके चैतन्य को अनुभव करते थे । ...आज के साधकों को देखता हुँ , उन्हे ५ साल होने के बाद भी शरीर का आकर्षण ही नही समाप्त हो रहा है । वे शरीर के सानिध्य के मायाजाल में अटकते ही जा रहे है । अभी भी चरण -स्पर्श की इच्छा रहती है । उनकी यह स्थिति देखकर मुझे भय लगता है औऱ मैं स्वयं को औऱ छुपाता हूँ औऱ साधकों से सदैव भागने का प्रयास करते रहता हूँ क्योंकि मैं उन्हे चैतन्य का सानिध्य देना चाहता हुँ , वे शरीर का सानिध्य चाहते है , इस शरीर के भीतर झाँकने की कोशिश नही करते ।
परमपूज्य गुरुदेव बाबा स्वामीजी
[ आध्यात्मिक सत्य ] १-४-२००७

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