ध्यानपध्दति

इस ध्यानपध्दति में बाहर से कोई उपदेश नहीं है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।जो भी होता है,वह भीतर से ही घटित होता है। यह ध्यान पध्दति जीवन में आत्मा का प्रकाश फैलती है। उस प्रकाश में सब स्पष्ट-स्पष्ट दिखाई देने लग जाता है और जो भी गलत जीवन में पकड़ा हुआ था,वह छूट जाता है। एक रामू किसान की कथा है कि उसने अँधेरे में अपने हाथों से एक साँप को रस्सी समझकर पकड़ रखा था।और उसका संपूर्ण विश्वस था कि उसने रस्सी ही पकडी थी। वह स्पर्श से भी अनुभव कर रहाथा कि वह रस्सी ही थी।और कमरे के बाहर से देखने वाले बाकी किसान  उसे चिल्लाकर बता रहे थे-- तूने साँप को पकड़कर रखा है। लेकिन वह किसान अपने गलत विश्वास पर कायम था कि उसने साँप नहीं, रस्सी ही पकड़ी थी और उस गलत विश्वास के कारण  वह उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।और कमरे के बाहर के लोग तो जान गए थे कि उसने जिसे रस्सी समझ रखा था,वह रस्सी नहीं थी,साँप था। और बाहर के किसानों को चिंता था कि उसने साँप पकड़ा हुआ था,वह उसे काट सकता था,वह उसे नुकसान पहुँचा सकता था,इसलिए वे चिल्ला-चिल्लाकर
उसे उस साँप को छोड़ने के लिए तैयार कर रहे थे। लेकिन वह छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।ऐसा काफी समय तक चलता रहा। फिर एक बूढे किसान को लगा--वह ऐसे नहीं छोड़ेंगा, उसके कमरे में ही प्रकाश कर दिया जाए। और उस बूढे किसान ने जाकर उस कमरे में प्रकाश कर दिया। और जैसे ही प्रकाश हो गया,फिर रामू किसान को कहना भी नहीं पड़ा--तूने साँप पकड़ा है,तू छोड़ दे;रामू किसान ने वह साँप तुरंत छोड़ दिया।...

हि.स.यो-४                  
पु-४४२

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