सवेधमे समभाव
आज की परीस्थीती मे सवेधमे समभाव को समझने की आवश्यकता है।आज यह माना जा रहा है ।अपने धमे को न मानना “ सवेधमे समभाव” है।लेकीन वास्तव मे प्रत्येक मनुष्यने अपने धमे को मानते हुये सभी धमोे का सम्मान करना चाहीये। यह सही अथे है।
प्रत्येक का धमे तो एक ही है। वह है “मानव धमे” बाकी हम जिसे धमे मानते है। वह शरीर मे मनुष्यता जगाने के लिये अपनायी हुयी उपासना पद्धती है।इसी लीये सभी उपासना पद्धतीयो मे मानव धमे जगाने का प्रयास कीया है। हम सभी कीसी न कीसी धमे( उपासना पद्धती) की सीढी पर पैदा हुये है। हमे अपनी सीढी को पकडकर बैठना नही है । हमे उससे उपर चढना है।उपर के मकान मे पहुच कर सिढी समाप्त हो जाती है।पर यह सदैव याद रखे सीढी के बीना मकान तक पहुचा भी नही जा सकता है।और सभी सीढीया मकान तक पहुचती है।
आप कीसी भी सीढी पर पैदा हुये हो अपने सीढी को चिपके मत रहो उपर चढो और मकान तक पहुचो यह मेरी शुद्ध इच्छा है। आप सभी को खुब खुब आशिवाद .
आपका अपना
बाबा स्वामी
6/12/17
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