सुक्ष्म चैतन्य
"प्रत्येक सदगुरु शरीर के कुछ न कुछ आवरण ओढ़े रहता है l हमे उन आवरणों पर ध्यान नहीं देना है l उस माध्यम के भीतर से बहनेवाली शक्तियों पर ध्यान देना है l शरीर के भीतर से बहनेवाला चैतन्य ही परमात्मा है l शरीर तो केवल दिखावा है l सुक्ष्म चैतन्य पर चित्त रखने का तरीका - जब शरीर सामने हो, तब भी शरीर को न देखते हुए भीतर के चैतन्य को अनुभव करना है l
शरीर हमें विचलित कर सकता है, और करेगा ही l शरीर विचलित करने के लिए ही बना है l यह करने का अभ्यास करना होगा l यह केवल चैतन्य पर चित्त रखने के अभ्यास से ही संभव है l नाशवान शरीर के भीतर शाश्वत चैतन्यरूपी परमात्मा छुपा है l शरीर तो छिलकामात्र है l उसे अलग करके ही देखना होगा l
सदगुरु का शरीर साधक भी है और बाधक भी है l शरीर का उपयोग चैतन्य की तरफ चित्त ले जाने के लिए किया तो साधक है और नहीं किया तो बाधक है l इसी शरीर की बाधकता के कारण ही सदगुरु को उनके जीवनकाल में बहुत विरले ही व्यक्ति जान पाते है l शरीर का आवरण समाप्त होने के बाद उस सदगुरु को पहचाना जाता है, पर तब बहुत देर हो चुकी होती है l
स्थूल शरीर आया तो स्थूल शरीर के दोष आएँगे ही l हमें यह देखना नहीं है, अनुभव करना है की कौनसा वह चैतन्य है जो लाखों लोग ग्रहण कर रहे हैं l किस चैतन्य से यह सामान्य शरीर लाखों लोगो से जुड़ा है और लाखों लोग इस शरीर से जुड़े हैं l यह ज्ञान जिसे प्राप्त हो गया, उसे यह शरीर साधक सिद्ध होगा, अन्यथा नहीं l चैतन्यरूपी 'नारियल का मीठा पानी' पिने के लिए हमें शरीररूपी छिलके के भीतर झाँकना ही होगा l"
~ सदगुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
स्त्रोत ~
"सदगुरु एक माध्यम है"
संदेश - ३ (१/३/२००७)
"परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी द्वारा "प्रथम ४५ दिवसीय गहन ध्यान अनुष्ठान २००७" के दौरान साधको को दिया गया संदेश"
मुख्य स्त्रोत : ग्रंथ ~ "आध्यात्मिक सत्य"
पृष्ठ क्रमांक - ३३, ३४.
Comments
Post a Comment