पत्नी ने पूछा बौद्ध मिक्षु या इस बार के प्रवास में मिले जैन मुनि आपसे अलग होते हुए भी आपसे इतने कैसे घुलमिल जाते है ?
उन्हें,वे अलग धर्म के है और आप अलग धर्म के है,इसका एहसास क्या कभी नही होता ? मेने कहा तू जानती है बौद्ध धर्म पर चलने वाले को,तू जानती है जैन धर्म के मार्ग पर चलने वाले को,लेकिन में मिला हुँ बौद्ध धर्म अपनाकर शून्य श्थिति तक पहुचे हुए बुद्ध मिक्षुओं को या जैन धर्म अपनाकर संपूर्ण 5जागृत श्थिति तक पहुँचे हुए जैन मुनियों को।बौद्ध मिक्षुओं की बात करु तो वे बुद्ध पुरूष है या ज्ञानी पुरुष है जो जाती ओर धर्म से ऊपर उठ गए है।और जैन मुनियों की बात करु तो जैन सब्द का अर्थ है,जगा हुआ । यानी जो जागृत है,वह जैन है,वह भले ही धर्म से जैन न भी हो,यह ह्दय की विशालता ही है कि जैसे-जैसे मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है,मनुष्य जागृत होता है और जैसे जैसे जागृत होता है,वैसे वैसे जाती,धर्म,लिंग,भाषा,देश,यह सभी भेद समाप्त हो जाते है।
हिमालय समर्पण योग
भाग:- ६
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