लकड़ियाँ इकट्ठा करने का कार्य
हमारा लकड़ियाँ इकट्ठा करने का कार्य तो संपूर्ण हो ही गया था।तब बस लकड़ियाँ लेकर पहाड़ से ऊपर चढ़ना था। वह कठिन कार्य तभी बाकी था। पहाड़ से उतरते समय वह पहाड़ इतना ऊँचा होगा ऐसा लगा नहीं था लेकिन ऊपर चढ़ते समय हमें पता चल रहा था कि वह वाकाई में बहुत ही ऊँचा पहाड़ था। एक तो चढ़ाई और ऊपर से लकड़ियों का वजन!इसलिए हम थोड़ा रुक-रुककर ही चल रहे थे। बीच में थोड़ी देर सुस्ताते थे और फिर चढ़ने लगते थे। मेरे भी पैरों की पिण्डलियाँ दर्द कर रही थीं लेकिन मैं सहन कर रहा था क्योंकि वहाँ किया ही क्या जा सकता था!जब हम रुककर देखते,तब मालूम पड़ता कि हम काफी ऊपर आ गए थे लेकिन तब भी रास्ता काफी बाकी था। हमारा लक्ष्य , हमारी पहाड़ी के नीचे,थोड़े-से अंतर नीचे एक गुफा थी,वहाँ तक पहुँचना था।सभी समय उस जंगल में जाना संभव नहीं होता था,इसलिए उस गुफा में लाई गई लकड़ियों का भण्डारण किया जाता था और बाद में उस भण्डार से लकडियाँ ली जाती थीं।लेकिन वह स्थान भी तब काफी दूर था। हम बातें करते हुए चल रहे थे। जैसे-तैसे , आखिर में उस गुफा तक पहुँचने में सफल हो गए। वहाँ पर पहले से ही कुछ लकड़ियाँ रखी हुई थीं। बीज और बगीचे से संबंधित अन्य सामान वहाँ पड़ा था। वहाँ पहुँचने पर हमें लगा मानो हम हमारी सीमा में ही आ गए हों। वहाँ पर धीरे-धीरे सभी लकड़ियों को जमाकर रखा और बाद में ऊपर ,पहाड़ पर चढ़ने लगे। और जब पहाड़ पर पहुँचे तब तक सूर्यास्त हो चुका था और अँधेरा होने ही वाला था। बाद में हम सभी अपने-अपने स्थानों पर चले गए। उस दिन मैं काफी थक गया था। पहाड़ी पर सामान लेकर चढ़ना थकाने वाला ही कार्य था।...
हि.स.यो-४
पु-३९३
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