विघाजी मुनि

एक मुनि और थे। वे काफी युवा और गोरे थे। उनका नाम ' विघाजी ' था।एक बड़ा आकर्षण उनमें था।वे सदा शांत ही रहते थे।पिछले दिन से वे हम लोगों की
बातें सुन रहे थे और उस दिन उन्हें बोलने की इच्छा हुई।वे बोले," मेरे घर में धार्मिक वातावरण ही था। मैं नियमित रूप से अपने पिता के साथ मंदिर जाता ही था।बाद में मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई और मैं गाँव से इंजिनियरिंग (अभियांत्रिकी) पढ़ने के लिए शहर आया।और वहाँ भी मेरा मन पढाई में नहीं लगता था लेकिन फिर भी पढ़ रहा था। मेरे पिता का सपना था कि मैं इलेक्ट्रिकल इंजिनियर (विद्युतीय अभियंता) बनूँ,इसलिए पढ़ रहा था।मेरे पिता का कारोबार मेरा बड़ा भाई सँभालता था।मेरी जब शिक्षा समाप्त हुई तो मैंने देखा--भाई ने काफी जायदाद अपने ही नाम कर ली थी।उसका ऐसा व्यवहार देखकर मेरा मन भी इस संसार से विरक्त हो गया। आध्यात्म की ओर तो बचपन से ही रुज्ञान था। बाद में मैं संघ में शामिल हो गया। और एक गुरुजी के साथ ही में यहाँ आया था।मेरे गुरुजी की भी मृत्यु हो गई। उन्होंने भी अपनी इच्छा से ही देहत्याग किया लेकिन मेरे साथ आए हुए दो मुनिअभी भी हमारे साथ रहते हैं। मुझे मेरे गुरु का सान्निध्य कम समय ही मिला।लेकिन वे भी खोजी थे,वे भी अनुभूति को खोज रहे थे।उन्होंने यहाँ आकर ही हमें आगे का मार्ग सिखाया।उन्होंने एक-एक चक्र पर  ध्यान करके एक -एक चक्र को कैसे स्वच्छ एवं पवित्र करते हैं,यह सिखाया।मेरी तो सारी आध्यात्मिक प्रगति ही यहाँ आकर हुई है। मेरे गुरुजी को बड़े महाराजश्री  ने सपने में आकर  दृष्टांत दिया था और यहाँ आने के लिए कहा था और यहाँ हम चार  लोग एक साथ आए। यहाँ पर जब हम पहुँचे तो ऐसा लगा कि स्वर्ग में ही आ गए हों। यहाँ आने पर बहुत अच्छा लगा। यहाँ पर भी समाज से आए हुए लोग हैं,मूलतः यहाँ का कोई नहीं है। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है।"...

हि.स.यो-४                  
पु-३८४

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