सुबह का नजारा
सुबह का नजारा बड़ा ही सुंदर था। सूर्योदय के पूर्व सब पक्षी भी उठ गए थे।पता नहीं क्या था, पक्षी और उनके बच्चे सूर्य की तरफ ही मुँह करके बैठते थे।सूर्योदय के समय भी और पिछले दिन सूर्यास्त के समय भी वही दृश्य देखा था। ऐसा क्यों करते थे, पता नहीं। शायद वे सूर्य की गर्मी को अपने शरीर में जमा करने चाहते हों। पक्षियों के बड़े-बड़े बच्चे जो थे,वे अपना चारा (भोजन ) खुद खा सकते थे,वे भी अपनी माँ के पीछे चोंच खुली करके घूमते थे। बड़े आलसी थे!उनकी माँ खुद उन्हें कम बार ही खिलाती थी,वह दूर-दूर भागती थी ताकि वे अपना चारा स्वयं खा सकें।लेकिन जिनके छोटे बच्चे थे,उनकी माँ बराबर ,दूर से भी चारा लाकर उन्हें खिलाती थी।तभी बच्चों के पंख नहीं थे,वे पंखहीन थे पर माँ के पंख थे, इसलिए माँ ही अधिक सुंदर दिखती थी। बच्चे कभी-कभी पानी में डुबकी लगाकर नही भी रहे थे। अब वे राजहंस,जब तक बच्चे बड़े नहीं हो जाते,अच्छे-से उड़ने नहीं लग जाते,तब तक वे वहीं पर निवास करने वाले थे।प्राकृतिक दृष्टि से सुंदर, शांत, प्रदूषणरहित और काफी भोजनवाली जगह होने के साथ-साथ वह जगह एकदम सुरक्षित थी।...
हि.स.यो-४
पु-३८९
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