आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना और आत्मसाक्षात्कार से मोक्ष प्राप्ति करना किस बात पर निर्भर होता है ?
आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना और आत्मसाक्षात्कार से मोक्ष प्राप्ति करना किस बात पर निर्भर होता है ? मैंने उन्हें समझाते हुआ कहा , आत्मसाक्षात्कार पाना दो बातों पर निर्भर होता है - एक पूर्वजन्म के पुण्यकर्म हों तो आत्मसाक्षात्कार पाप्त हो सकता है। लेकिन वे पुण्यकर्म आत्मा की शांति के लिए ही किए गए हों ,अन्यथा आत्मसाक्षात्कार पाकर भी उसे साधक खो देता है क्योंकि वह उसका महत्व ही नहीं जानता। और दूसरा , आत्मा की शुद्ध इच्छा से अगर आप आत्मसाक्षात्कार को पाते हैं तो आप , आपको क्या मिला है इसका महत्व जानते हैं। और फिर आपकी आत्मा उस आत्मसाक्षात्कार को आत्मसात कर लेती है। यानी इस मार्ग में पुण्यकर्मों से भी अधिक महत्व आत्मा की पवित्रता से होता है। आत्मसाक्षात्कार पाकर मोक्षप्राप्ति करना यह तो साधक की श्रद्धा और विश्वास पर ही निर्भर है। उसका उसके गुरु पर कितना विश्वास है , कितनी श्रद्धा है , उसी पर यह सब निर्भर होता है। श्रद्धा और विश्वास से ही मनुष्य का अपने गुरु के प्रति समर्पण हो जाता है। समर्पण होना यह एक बड़ी धटना है जो आत्मा के स्तर पर होती है । समर्पण हो जाने के बाद साधक अपने गुरु में समाहित हो जाता है। समाहित हो जाता है यानी साधक की आत्मा गुरु की आत्मा तक पहुँचकर विलीन हो जाती है और इसी एक धटना के कारण गुरु में बहने वाले चैतन्य प्रवाह की स्थिति साधक भी अपने शरीर में सतत अनुभव करने लग जाता है। साधक की आत्मा का नियंत्रण साधक के शरीर पर पूर्णतः हो जाता है।
भाग ६ - ६५/६६
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