सहस्त्रार पर कुण्डलिनी
एक रात को आश्रम के बगीचे में ध्यान करते समय मुझे अनुभव हुआ कि मेरे मस्तिष्क पर कुछ गोल-गोल घूम रहा था । हिंडोले में बैठकर जैसा अनुभव होता है , वैसा ही ५-७ मिनट तक हुआ । फिर मैंने भयभीत होकर अपनी आँखों खोल दी और सब कुछ एकदम से स्थिर हो गया । जैन मुनि शिबिर में जब उस अनुभव के बारे में स्वामीजी को बताया तो उन्होंने कहा कि सहस्त्रार चक्र पर कुण्डलिनी की हलचल होने से ऐसा हुआ था । तब लगा कि आँखें न खोली होती तो अच्छा था किंतु बाद में सोचने पर एहसास हुआ कि कदाचित मेरी योग्यता उतनी ही थी इसीलिए स्वामीजी ने उतनी ही अनुभूति कराई और योग्यता के अनुसार अनुभूति भी बढ़ेगी ।
श्री प्रशांत मुनि
मधुचैतन्य
Sep-Oct , 2017
Pg.42
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