सदगुरु का स्वरुप एक समुद्र जैसा

सदगुरु का स्वरुप एक समुद्र जैसा होता है। वहाँ जाकर नदियों को और झरनों को विलीन होना होता है। अपना नदी का अलग अस्तित्व समाप्त करना होता है। क्योंकि उस विलय के बाद नदी समुद्र कहलाती है। परमात्मा सद्गुरु के माध्यम से आप तक पहुँचता है और अनुभूति के माध्यम सर वह अपने आने का संकेत भी देता है। उस ईश्वरीय संकेत को समझकर हमें स्वंय को , उसी अनुभूति को पकड़कर , विसर्जित करना है। क्योंकि अनुभूति और परमात्मा अलग नहीं हैं। सदगुरु का शरीर तो माध्यम है, पाईप है। हमें उसके भीतर के चैतन्य से जुड़ना है।

भाग ६ - ५१

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