गर्भाधान
प्राचीन समय में गर्भाधान का भी समय देखा जाता था | गर्भाधान के समय अच्छा वातावरण होना चाहिए , अच्छे विचार होने चाहिए, और अच्छी मानसिक स्तिथि होनी चाहिए | गर्भाधान भी तीन स्तरों पर होता है | एवं उसी के आधार पर तीन प्रकार की आत्माएँ जन्म लेती हैं |
अगर शारीरिक सम्बन्ध वासना के स्तर पर हुआ है , तो आसुरी स्तर की आत्मा जन्म लेगी |
अगर शारीरिक सम्बन्ध मधुर और आत्मिक स्तर पर हुआ है ,तो मनुष्य के स्तर की आत्मा जन्म लेगी | और इस आत्मा को अगर आसुरी आत्माओं की सामूहिकता मिलेगी ,तो आसुरी आत्मा बनेगी और अगर पुण्य आत्माओं की सामूहिकता मिली, तो पुण्यात्मा बनेगी |
और तीसरा स्तर होता है की शारीरिक सम्बन्ध ध्यान की उच्च आध्यात्मिक स्तिथि में हो जाए ,तो ऐसी उच्च अवस्था में हुआ सम्बन्ध दैवी आत्माओं को जन्म देगा |
सबकुछ माता पिता की उस समय की स्तिथि पर ही निर्भर करता है | इसी कारण एक ही माता पिता की संतानें ,घर के समान संस्कार होने पर भी दैवी आत्मा, मानवी आत्मा , आसुरी आत्मा होती है |
गर्भाधान के आत्मा के
तीन स्तर तीन स्तर
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शारीरिक --> आसुरी
आत्मिक --> मानवी
आध्यात्मिक --> दैवी
वास्तव में, आत्मा उच्च स्तर या निम्न स्तर की नहीं होती है | उस आत्मा के साथ जो कार्य जुड़ जाते हैं , उन कर्मों का हिसाब किताब कुण्डलिनी शक्ति के रूप में आत्मा के साथ होता है | वे कर्म ही अगले जन्म में भविष्य का निर्धारण करते है |
अतः अपने ही किए गए कर्मो के आधार पर एक आत्मा अगले जन्म में खुद को आसुरी , मानवी या दैवी स्तर पर ले आती है |
हि.स.यो.१/४३२
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