आध्यात्मिक प्रगति के क्षेत्र में पवित्र चित्त का बड़ा महत्त्व

"आध्यात्मिक प्रगति के क्षेत्र में पवित्र चित्त का बड़ा महत्त्व होता है | कोई भी बुरा नकारात्मक विचार चित्त  को अपवित्र कर सकता है | एक पवित्र चित्त एक पवित्र शरीर में ही वास करता है | कमजोर शरीर चित्त को भी कमजोर करता है | चित्त का सम्बन्ध मूलाधार चक्र के साथ होता है | इस स्थान से शरीर में आये बुरे विचारों की ऊर्जा पृथ्वी तत्त्व में छोड़ी जा सकती है |-- यह चक्र शरीर व चित्त के शुद्धिकरण की क्रिया करते रहता है | यह एक शक्तिस्थान है | शरीर में कोई भी नयी ऊर्जा ग्रहण करने के पूर्व शरीर का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है | -- हमारे शरीर में कई देव शक्तियां हैं | कई सकारात्मक शक्तियां होती हैं |  पर जबतक हमारा चित्त बहार होता है ,वे विकसित ही नहीं होती हैं | प्रत्येक मनुष्य में नर से नारायण बनने की संभावना होती ही है | यह अवसर सबको समान रूप से उपलब्ध होता है | जब हम  ध्यान करते हैं तभी हमारा चित्त भीतर की और जाता है , तभी वे शक्तियां एक एक करके बाहर आने लगती हैं | उन सब शक्तियों को विकसित करने के लिए एक जन्म कम मालूम होता है | यह तो आध्यात्मिक उत्क्रांति की प्रक्रिया होती है | सब धीरे -धीरे होता है | -- जिसमे लगन हो और आध्यात्मिक प्रगति ,यही जीवन का एकमात्र उद्देश्य हो ,वही इस साधना में सफलता पा सकता है |"

हि.स.यो.१/२३९

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