मनुष्य का कोई शत्रु है तो वह है उसका मन

उस दिन लगा कि मनुष्य के जीवन में विपत्ति इतनी बड़ी नहीं आती है लेकिन विपत्ति से बड़ी विपत्ति की आशंका ही होती है। यानी मनुष्य जो बुरा हुआ ही नहीं है, वह भी सोच लेता है। इसलिए लगा कि मनुष्य का कोई शत्रु है तो वह है उसका मन। क्योंकि उसका मन जीतना बुरा होने का सोचता है , उतना ही उसका शत्रु भी नहीं सोचता है  ।

हि. का. स. यो.भाग ६ - ५६/५७

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