स्मृति
प्राचीन काल की बात है , दो मित्र एक गाँव जा रहे थे | रास्ते में मरुथल - सा था | दोनों पैदल जा रहे थे | बातें करते -करते वे काफी दूर तक चले | तभी अचानक किसी बात पर दोनों में बहस हो गई | बहस ने धीरे - धीरे उग्र झगडे का रूप ले लिया | एक मित्र का क्रोध बेकाबू हो गया और उसने दूसरे मित्र के गाल पर थप्पड़ जड दिया | जिस मित्र ने थप्पड़ खाया , उसे बहुत बुरा लगा | उसने रेती पर अँगुली से लिखा , "आज मेरे मित्र ने मुझे थप्पड़ मारा | उसने मुझे बहुत दुःख पहुँचाया है" |
ऐसा लिख कर उन्होंने यात्रा फिर शुरू की | थोडे ही समय में वे पूवँवत् बातें करते हुए चलने लगे | रास्ते में तालाब था | दोनों को प्यास लगी थी | उन्होंने अपनी प्यास बुझाई और हाथ - पैर धोए | दोनों को बहुत गरमी हो रही थी , इसलिए दोनों ने तालाब में नहाने का विचार किया | दोनों तालाब में नहाने लगे | नाते हुए एक मित्र थोडा आगे बढ़ा | वह दल-दल जैसी मिट्टी में फंस गया | दूसरा मित्र जिसने थप्पड़ मारा था , वह किनारे पर खड़ा था | जब उसने देखा कि मित्र दल-दल में फँसा है , उसने उसकी जान बचाई | तब उस मित्र ने ( जिसने थप्पड़ खाया था ) अपने मित्र को जान बचाने के लिए धन्यवाद दिया | फिर जेब से चाकू निकाला और पास के बडे पत्थर पर कुरदे कर लिखा , "मेरे मित्र ने मेरे प्राण बचाए हैं | मैं हदयपूवँक उसका आभारी हूँ "|
उस देख मित्र ने पूछा , "जब मेंने तुम्हें थप्पड़ मारा , तब तुमने रेती पर लिखा और अभी तुम्हारी सहायता की तो तुमने पत्थर पर लिखा | ऐसा क्यों ??"
मित्र ने उतर दिया , "जब तुमने मुझे थप्पड़ मारा , तब मैं दु:खी हुआ, पर मैं उस क्रोध को याद रखना नहीं चाहता था , इसीलिए रेत पर लिखा | किन्तु जब तुमने मेरे प्राण बचाए , उस उपकार को मैं भूलना नहीं चाहता था , इसलिए उसे पत्थर पर लिखा"|
* सारांश *
हमें भी अपने दु:खद क्षणों को रेत पर लिखे शब्दों की तरह जल्दी भुला देना चाहिए और सभी को क्षमा कर देना चाहिए | किन्तु किसी के उपकार को सदैव याद रखना चाहिए |
आपकी गुरूमाँ
"प्रेरक प्रसंग"
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