अपने दोष
आपके अंदर इच्छा जागृत होनी चाहिए - -अपने दोष देखने की , अपने अंदर झाँकने की , अपना अवलोकन करने की , अपने को देखने की । ये देखना आप सीख गए न , फिर आपको कोई गुरु की आवश्यकता नही है , कोई स्थान की आवश्यकता नही है , , तिर्थक्षेत्र की आवश्कता नही , कुछ आवश्यकता नही है । और दूसरा ये ध्यान करना सीख जाओ न तो मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाएगा ।
परम पूज्य स्वामीजी
8 नवंबर 2014
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