आज मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन
आज मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन बन गया हे । आज मानव समाज को मानव से जितना खतरा हे, उतना आज के पूर्व कभी नहीं था । इन सबका कारण हे " एक तरफ़ा विकास" । सारी खोज बहार की और हो रही हे । मनुष्य अपने आपको नहीं जान पाया, पर चाँद पर चला गया हे । प्रथम सारी खोज भीतरी होनी चाहिए । यह भीतरी खोज ही हमें आत्मशांति प्रदान करेगी । ये भौतिक साधन निर्जीव हे । ये जिवंत (सजीव) सुख नहीं दे सकते हे । ये केवल सुविधा दे सकते हे, आराम दे सकते हे, पर सुख नहीं दे सकते । सुख सदैव भीतर से हु प्राप्त हो सकता हे ।
प.पु.श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
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