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Showing posts from April, 2018
🌺ध्यान की विधी🌺🌺🌺🌺 कल एक साधक ने पुछा ध्यान करता हु। पर ध्यान नही लगता क्या करू? वास्तव मे ध्यान करना यह शब्द ही गलत है। हम जिवन मे सब कुछ करने की इतनी आदत लग गयी है। की हम ध्यान भी करने लग जाते है। वास्तव मे तो कुछ नही करना ही ध्यान है। कुछ नही केवल मै एक पवीत्र आत्मा हु। मै एक शुदध आत्मा हु।इतना कहते हुये ३० मीनीट बैठना है।तो कुछ दिन के बाद ध्यान तो खुद ही लग जायेगा। क्योकी जैसे जैसे हमारा शरीर का भाव कम होगा वैसे वैसे आत्मभाव बढेगा।                बाबा स्वामी               14/3/18
शरीर अपना नियंत्रण आपके शरीर पर बनाए रखना ही चाहेगा। एक लकीर को अगर बिना काटे कम करना हो तो उस लकीर के सामने उससे बड़ी लकीर खेंच दो तो पहली वाली लकीर बिना काटे आप छोटी कर देते हो। ठीक इसी प्रकार से , को अगर हमें हमारे शरीरभाव को कम करना है ताकि शरीर पर शरीर का नियंत्रण कम हो सके , तो आत्मभाव को बठाना होगा। अगर आत्मभाव को बठ़ा जाएगा तो शरीरभाव स्वयं ही कम हो जाएगा और आत्मभाव को बठ़ाने का मार्ग है - आप अपने - आपको शरीर न समझते हुए आत्मा समझें। आप अगर अपने - आपको आत्मा मानते हैं तो आपके भीतर का आत्मा का भाव बठेंगा और आपके भीतर का आत्मभाव बठ़ाने के लिए आपको रोज  मैं एक पवित्र हूँ मैं एक शुद्ध आत्मा हूँ इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे आप एक शरीर नहीं हैं , आप एक आत्मा हैं यह भाव आपके भीतर जितना बठ़ेगा , आपके शरीर पर आपने आत्मा का नियंत्रण होना प्रारंभ हो जाएगा और आप समस्याओं से मुक्त हो जाओगे। मनुष्य की सभी समस्याएँ मनुष्य के शरीर से ही संबंधित होती हैं। और जब मनुष्य का शरीरभाव कम होगा तो सभी समस्याओं से मनुष्य को मुक्ति मिल जाएगी भाग - ६ - १९४/ १९५
Aneri: _*जीवंत गुरु एक साक्षात अनुभूति होता है। पर केवल जागृत आत्मा वह अनुभूति ले पाती है, बाक़ी लोग तो उसका सान्निध्य पाकर भी अनुभूति नहीं ले पाते है। क्यूँकि उनका ध्यान उस चैतन्य पर होता ही नहीं है। *_ _*जय बाबा स्वामी*_ 🍁🙏🏻🍁 _*HSY 3 pg 131*_
यह ध्यान पद्धति मनुष्य को आत्मा के अधीन होकर ध्यान करना सिखाती है और इस ध्यान पद्धति से ध्यान करने से मनुष्य पर आत्मा का नियंत्रण धीरे-धीरे हो जाता है। अब अगर यह ध्यान कटने से मनुष्य के शरीर का नियंत्रण कम होने लगता है तो कौन सा शरीर है जो अपने नियंत्रण को कम करने देगा ? कोई भी शरीर अपना नियंत्रण कम करना नहीं चाहता। और इसीलिए इस ध्यान पद्धति का विरोध आपका शरीर ही करता है। प्रथम तो वह आपको ध्यान करने को बैठने नहीं देगा। अगर आप ध्यान करने बैठे तो विरोध करेगा। अब विरोध करेगा यानी क्या करेगा ? आपको कभी जहाँ खुजली नहीं छूटी , वहाँ आपको खुजली होने प्रारंभ होगी। आपको डकारें आना प्रारंभ होंगी , आपकी गैस आपके नीचे के द्वारे से भी निकलेगी , आपको नींद आने लग जाएगी ,आपको खाँसी आने लग जाएगी , आपको छींके आने लग जाएँगी। इस प्रकार से , प्रथम विरोध में तो सारा शरीर ही खड़ा हो जाता है। बाद में अगर आपने यह सब सह लिया और फिर ध्यान करने का प्रयत्न किया तो फिर शरीर बुद्धि का उपयोग करता है। यह आपके बुद्धि के द्वारा आपको यह समझाने का प्रयास करेगा कि यह ध्यान से शरीर को आत्मा के नियंत्रण में करना , यह तेरे जैसे
Aneri: _*सदगुरु आत्मा को जन्म देने वाली माँ है। यह आत्मा और सदगुरु का रिश्ता जन्मो जन्मो का रिश्ता होता है। यह रिश्ता शाश्वत है क्यूँकि सदगुरु के बिना आत्मा का जन्म ही  सम्भव नहीं है। इसलिए जीवन में इस रिश्ते का बड़ा महत्व है। *_ _* जय बाबा स्वामी*_ 🌼🙏🏻🌼 _*HSY 1 pg 216*_
आपका चित्त खाने में से पूर्ण ही निकल जाए , यही इस यात्रा का उदेश होता है। कोई बात प्रथम विचार में आती है। अधिक बार विचार में आने से चित्त में आती है और चित्त में आने से कूती शरीर से होने की संभावना होती है । यहाँ कोई विशिष्ट व्यंजन खाने का विरिध नहीं है। लेकिन यही व्यंजन खाने को चाहिए , यह बार - बार सोचने से विरिध है। क्योंकि आप जब खाते हैं , तब तो केवल खाने की क्रिया होती है लेकिन जब आप सोचते हैं तो चित्त दूषित होता है। पवित्र , शुद्ध चित्त से ही आध्यात्मिक कार्य की शुरुआत की जा सकती है। समर्पण ध्यान एक ध्यान की पद्धति है जिसमें परमात्मा के माध्यम के माध्यम से परमात्मा रूपी विश्वचेतना से ध्यान के द्धारा अपने-आपको जोड़ा  जाता है। दूसरा , यह पद्धति दो बातें पर ही निर्भर करती है। एक तो सामूहिकता। यह पद्धति से ध्यान में प्रगति करने के लिए ध्यान सामुहिकता में करना आवश्यक होता है। और दूसरा , ध्यान नियमित करना आवश्यक होता है। कोई भी अभ्यास हो , कोई भी साधना हो , नियमितता तो सदैव आवश्यक होती ही है। प्रथम हमें हमारे शरीर को उस ध्यान की पद्धति के लिए तैयार करना पड़ता है। क्योंकि प्रथम हमारे शरीर
**🦋🕉🦋*********************** " तो   मेरे   इस   सामान्य   मनुष्य   के   शरीर   के   पीछे   जो   सदगुरुरूपी   पवित्र   आत्मा   है , उसे   समझने   की   कोशिश   करो । हम   सामान्यतः   डिब्बे   के   पेकिंग   को   ही   देखते   है । भीतर   के   माल   को   जीवन   में   देख   ही   नही   पाते   है । और   जब   देख   पाते   है , तब   उनके   भीतर   ही   परमात्मा   के   दर्शन   हो   जाते   है । परमात्मा   की   सारी   खोज   ही   समाप्त   हो   जाती   है ।"...... ********************************* ही..स.योग..[ ५ - २३२ ] ।।जय बाबा स्वामी ।। ************************🦋🕉🦋*
*॥जय बाबा स्वामी॥* ब्रह्मज्ञान कोई पुस्तक का ज्ञान नहीं हैं। यह एक सूक्ष्म , अनुभूती का ज्ञान हैं जो अलिखित है। यह कहीं भी लिखा हुआ नहीं है। इसे केवल अपनी इच्छाशक्ति से ही दिया जा सकता है। देनेवाले को देने का अधिकार होना चाहिए और लेनेवाले को लेने की शुद्ध इच्छा होनी चाहिए। जबतक ब्रह्मज्ञानी गुरू नहीं मिलता , तब तक ब्रह्मज्ञान नहीं हो सकता। *हिमालय का समर्पण योग ३/ १६९* *॥आत्म देवो भव:॥*
Aneri: _*चैतन्य की अनुभूति एक जीवंत प्रक्रिया है। इस अनुभूति को अनुभव करानेवाला और करने वाला , दोनो ही जीवंत होने आवश्यक है। तभी अनुभूति हो सकती है। *_ _* जय बाबा स्वामी*_ 🍁🙏🏻🍁 _*HSY 3 pg 100*_
Aneri: _*गुरु गुरूकार्य के रूप में कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। गुरुकार्य के रूप में गुरु सदैव जीवित रहता है। उसके कार्य में योगदान देना, उसका कार्य बढाना ही सही अर्थ में गुरुदक्षिणा देना है। *_ _* जय बाबा स्वामी*_ 🍁🙏🏻🍁 _*HSY 3 pg 89*_
Vivek ( जय बाबा स्वामी ): 🙏  एक मित्र ने पूछा है कि ध्यान के अतिरिक्त जो समय बच रहा है शिविर में, उसमें हम क्या करें ??? उन्होंने पूछा है: क्या हम आपकी किताबें पढ़ें ??? नहीं, ध्यान शिविर में किताबें न पढ़ें तो अच्छा। मेरी या किसी की, कोई किताब न पढ़ें। जो समय बचता हो, एकांत में किसी वृक्ष के नीचे बैठ जाएं, ध्यान में लगाएं, मौन में लगाएं। किताबें फिर कभी पढ़ी जा सकती हैं। और किताबों से पढ़ कर कभी कुछ बहुत मिलने को नहीं है। इसलिए यहां ध्यान शिविर में तो जितनी देर डूब सकें ध्यान में उसकी फिक्र करें। जो भी खाली समय बच जाए--खाने, सोने, स्नान करने से, वह वृक्षों के नीचे एकांत में कहीं भी बैठ जाएं। जो भी हो रहा हो उसे होने दें। उसकी भी फिक्र न करें कि अकेले में करूंगा तो कौन क्या कहेगा। कोई यहां कुछ कहने को नहीं है.......😍 ❣ _*ओशो*_  ❣ 🌷 *जो घर बारे आपना-(साधना-शिविर)-प्रवचन-04*  🌷 🌹💓🌹💓🌹💓🌹💓🌹💓🌹
🌺🌺शिडीे महाशिबीर के पुवे की विषेष सुचना 🌺🌺🌺🌺🌺🌺 मॉ के गभे से आजतक हमने अंन्दर से केवल बाहर की ही यात्रा की है।और सदैव बाहर की दुनीया को ही जाना है। और टी वी . इन्टरनेट.सिनेमा.और मोबाईल वगैर् माध्यमो से हम अपने आप को छोडतर सभी को जानते है। कल से शिडीे के “ साई दरबार” मे जिवन मे पहली बार अपने आप को जानने का अपने आप को पहचानने का अवसर श्री साईबाबा की विषेष कृपा मे विश्व के प्रत्येक मनुष्य को मीलने वाला है। कोई मायना नही है। की आप कीस धमे. जाती.देश.भाषा के है।बस एक मनुष्य है। यह योग्यता ही काफी है। केवल बाबा ही है। जो आपका चित्त आप के भितर करते है। बाकी सारी दुनीया तो चित्त को बाहर ही लेके जाती है। यह स्वणि्म अवसर मत खो देना।                 बाबा स्वामी            22/4/2018(शिडीे) 🌺🌺 Special notice regarding the Shirdi Mega Shibir 🌺🌺🌺🌺🌺 Right from the time we were in our mother's womb till today we have been travelling only from the world inside to the one outside. And we have always known only the outside world. Through the medium of TV, internet,
@$wiπi .: *॥जय बाबा स्वामी॥* एक नदी समुद्र को क्या दे सकती है? हाँ , नदी समुद्र को समर्पित हो सकती है। ठीक इसी प्रकार , गुरु भी शिष्य का आत्मसमर्पण चाहते हैं , ताकि  वे शिष्य की आत्मा को आगे का मार्ग दिखा सकें। और शिष्य है कि अपने -आपको छोडकर बाकी सबकुछ ही समर्पित करता रहता है और गुरु उसके आत्मसमर्पण का ही इंतजार करते रहते हैं। शिष्य जो गुरु को देता है , वह भौतिक स्वरूप में होता है। वह भेंट देखी जा सकती है , दिखाई जा सकती है। पर गुरु जो शिष्य को देते हैं , वह भौतिक स्वरूप में नही होता। वह न तो देखा जा सकता है और न ही दिखाया जा सकता है क्योंकि वह सूक्ष्म रूप में होता है। वह केवल अनुभव किया जा सकता है। *हिमालय का समर्पण योग ४/१८६* *॥आत्म देवो भव:॥* *॥जय बाबा स्वामी॥* सर्वधर्म समभाव के ऊपर मैं कार्यरत था और कार्य करते-करते , करते-करते, करते-करते जैसे वो शिर्डी के साईबाबा के क्षेत्र में आ गया, उनकी प्रॉपर्टी *(आध्यात्मिक ज्ञान)* मुझे खुद-ब-खुद ट्रान्स्फर हो गई। मेरा उनके साथ कुछ भी संभंध नहीं है;संभंध है तो कार्य समान है , एक-सा कार्य है और कार्य के कारण समानता आ गई है और कार्य समानत
Aneri: _* गुरुदेव ने बड़े प्रेम से मेरे सिर पर हाथ फेरा और कहा,” बेटा, जीवन में जो भी पाना चाहते हो, वह देना सिख लो। फिर पाना नहीं पड़ेगा, स्वयं ही मिल जाएगा। “*_ _* जय बाबा स्वामी*_ 🍁🙏🏻🍁 _*HSY 3 pg 70*_ @$wiπi .: *॥जय बाबा स्वामी॥* वह समाधी देहत्याग करने के बाद कई सालों पर्यंत तब तक क्रियान्वित रहती हैं जब तक सद्गुरु का संकल्प रहता है।  सद्गुरु अपनी संकल्प शक्ति से उस (समाधिस्थ) शरीर के माध्यम से कार्यरत रहते ही हैं। इसलिए सद्गुरु की समाधी के पास जाने से , दर्शन करने से भी मनुष्य के दुःख दूर होते हैं , मनुष्य की पीडा नष्ट होती है , मनुष्य के बिगडे हुए काम बन जाते है। क्योंकि सकारात्मक शक्तीयों का एक प्रवाह सद्गुरु के शरीर से सदैव बहता ही रहात है। सद्गुरु के समाधिस्थ होने के पच्चीस सालों के बाद उनके समाधीस्थान को महत्व मिलना प्रारंभ हो जाता है। *हिमालय का समर्पण योग ४/५०* *॥आत्म देवो भव:॥* *॥जय बाबा स्वामी॥* मैं कई सालों से ये 'समर्पण ध्यान योग' का प्रचार कर रहा था , प्रसार कर रहा था , निशुल्क कर रहा था। अब मेरे को अच्छा लग रहा है इसलिए कर रहा था। अब इसके अंदर त
@$wiπi .: *॥जय बाबा स्वामी॥* वह समाधी देहत्याग करने के बाद कई सालों पर्यंत तब तक क्रियान्वित रहती हैं जब तक सद्गुरु का संकल्प रहता है।  सद्गुरु अपनी संकल्प शक्ति से उस (समाधिस्थ) शरीर के माध्यम से कार्यरत रहते ही हैं। इसलिए सद्गुरु की समाधी के पास जाने से , दर्शन करने से भी मनुष्य के दुःख दूर होते हैं , मनुष्य की पीडा नष्ट होती है , मनुष्य के बिगडे हुए काम बन जाते है। क्योंकि सकारात्मक शक्तीयों का एक प्रवाह सद्गुरु के शरीर से सदैव बहता ही रहात है। सद्गुरु के समाधिस्थ होने के पच्चीस सालों के बाद उनके समाधीस्थान को महत्व मिलना प्रारंभ हो जाता है। *हिमालय का समर्पण योग ४/५०* *॥आत्म देवो भव:॥* *॥जय बाबा स्वामी॥* मैं कई सालों से ये 'समर्पण ध्यान योग' का प्रचार कर रहा था , प्रसार कर रहा था , निशुल्क कर रहा था। अब मेरे को अच्छा लग रहा है इसलिए कर रहा था। अब इसके अंदर तो कोई ईगो या अहंकार आने का प्रश्न ही नही था न? उसके बावजूद भी अहंकार था। अहंकार ये था कि मैं मेरे पैसो से आता हूँ , मैं मेरे पैसो से जाता हूँ। किसी से कुछ नही लेता। मेरेको अच्छा लगता है इसलिए ये कार्य करता हूँ। ये
@$wiπi .: *॥जय बाबा स्वामी॥* कोई अच्छा कार्य हो रहा है उस अच्छे कार्य की कामना करना। अगर इतना भी करते हैं तो हम अनजाने में उस कार्य के साथ जुड़ जाते हैं, हमारा लगाव हो जाता है और जब वो कार्य संपन्न हो जाता है ना , तो हमको खुशी होती है , हमको प्रसन्नता होती है - अरे , मैंने प्रार्थना की थी वो होना चाहिए , वो हो गया। जैसे सूरत महाशिबिर में दो लाख साधकों ने प्रार्थना की थी कि शिर्डी में साईबाबा का सिंहासन सोने का होना चाहिए, सब ने प्रार्थना की थी और जब हुआ , दो लाख लोगों को आनंद हुआ , दो लाख खुशी प्राप्त किए। तो ऐसे हम प्रार्थना के माध्यम से भी कही जुड़ जाते हैं , तो भी उसका हमको आनंद मिलता है, एक समाधान मिलता है। *श्री साईबाबा समर्पण ध्यानयोग महाशिबिर २०१३* *॥आत्म देवो भव :॥*
@$wiπi .: *॥जय बाबा स्वामी॥* आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति करनी हो तो अपनी इच्छा छोडनी पडती है , अपनी स्वयं की कोई इच्छा ही नहीं होती है , सबकुछ 'उसकी' इच्छा पर निर्भर होता है।             --- *बाबा स्वामी* 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

समर्पण ध्यान संस्कार

एक  पवित्र  और  शुद्ध  आत्मा  के  द्वारा  एक  पवित्र  और  शुद्ध  आत्मा  पर किया  गया  यह  एक  संस्कार  है । इस  प्रक्रिया  को  घटित। होने  के  लिए  और  इस  संस्कार  को  ग्रहण  करने  के  लिए  प्रथम  आत्मा  होना  पड़ता  है । आत्मा  ही  इस  संसार  में  नाषवान  नहीं  है । बाकी  सब  नाषवान  है । जब  आप  इस  पवित्र  संस्कार  को  ग्रहण  करते  है  और  अपने  भीतर  विकसित  करते  है  तो  आप  मानव  से  महामानव  हो  जाते  है  और  फिर  आपका  शरीर  तो  माध्यम  बन  जाता  है । और  फिर  मेरे  जैसे  एक  सामान्य  मनुष्य  के  माध्यम  से  भी  २२ वर्ष  में  ही  विश्वस्तर  का  कार्य  हो  जाता  है  और  यह  हो  सकता  है । इसका  उदाहरण  मुझे  हिमालय  से  समाज  में  भेजकर  "हिमालय  के  गुरुओं " ने  दिया  है । यह  केवल  "समर्पण  संस्कार " से  ही  संभव  हो  सका  है । .... ⚜  पूज्य गुरुदेव ⚜             ♻ परिचय  ♻                 🎍आत्मेश्वर 🎍                         
@$wiπi .: 🌹 .जय बाबा स्वामी.🌹 " अब जीवन में देने की इच्छा करो, परमात्मा तुम्हारी झोली उसीसे भर देगा जो तुम देना चाहते थे। तुम लोगो को खुशियां देने की शुद्ध इच्छा रखोगे, तुम्हारे जीवन में खुशियों की बरसात होगी । तुम लोगो को सुख देने की शुद्ध इच्छा रखोगे, परमात्मा तुम्हे सुखी कर देगा ।तुम लोगों में धन बाँटने की शुद्ध इच्छा करोगे, परमात्मा तुम्हारे ऊपर धन की बरसात कर देगा। तुम लोगो में प्रेम बाँटने की शुद्ध इच्छा रखोगे परमात्मा तुम्हारे ऊपर प्रेम की झड़ी लगा देगा। तुम जीवन में आत्मीयता बाँटने की इच्छा रखोगे, परमात्मा तुम्हे आत्मीयता से भर देगा। तुम दूसरे बच्चों को सुखी रखने की शुद्ध इच्छा रखोगे, परमात्मा तुम्हारे बच्चों को सुखी रखेगा। तुम जीवन में आदर पाना चाहते हो तो जीवन में दुसरो को आदर दो। जीवन में तुम केवल दूसरों में बाँटने की इच्छा रखो, तुम्हे जीवन में सबकुछ मिल जायेगा । हि.स. योग -४ , पेज. ४२० 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 🌻🌺23 साल हुये🌻🌺 पिछले 23 साल मुझे हिमालय से समाज मे आये हुये है। इन23 सालो लाखो लोगो को मीलना हुआ जानना हुआ।लेकीन कीसी के प्रती भी मेरे मन मे बुरा भाव