मोक्षप्राप्ति को मनुष्ययोनि में आठ जन्म लगते हैं |
इस प्रकार से मोक्षप्राप्ति को मनुष्ययोनि में आठ जन्म लगते हैं | और इन सबकी शुरुआत होती है पुण्यकर्म से, जो करना आसान होता है | ये पुण्यकर्म ही हमारा चित्त हमारे ऊपर से हटाकर दूसरे की ओर ले जाते हैं | पुण्यकर्म वह कर्म है जिससे आप दूसरों को सुखी कर आप सुखी होते हैं | यानि आपको सुखी होने के लिए दूसरे चाहिए | यानि पुण्यकर्म करके आप दूसरों पर उपकार नहीं कर रहे हैं | दूसरे आपपर उपकार कर रहे हैं क्योंकि उन्ही के कारण आप सुखी हो पा रहे हैं | दूसरे ही नहीं होते तो आप सुखी नहीं हो सकते थे | वास्तव में ,पुण्यकर्म करना एक भावना है जिस भावना से हम दूसरों को सुखी कर सुख पाते हैं | वास्तव में तो पुण्यकर्म अपने ही चित्त के शुद्धिकरण का मार्ग है , हम हमारे ही चित्त को शुद्ध करते रहते हैं |
हि.स.यो.५/२८
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