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*॥जय बाबा स्वामी॥*

सभी पुण्याआत्माओं को मेरा नमस्कार...

प्रत्येक साधक की कुछ दिन ध्यान साधना करने के बाद यह जानने की इच्छा होती है कि मेरी कुछ 'आध्यात्मिक प्रगति' हुई या नहीं और 'आध्यात्मिक प्रगति' को नापने का मापदंड है , आपका अपना चित्त। आपका अपना चित्त कितना शुद्ध और पवित्र हुआ है वही आपकी आध्यात्मिक स्थिति को दर्शाता है। अब आपको भी अपनी आध्यात्मिक प्रगति जानने की इच्छा है , तो आप भी इन निम्नलिखित चित्त के स्तर से अपनी स्वयं की आध्यात्मिक स्थिति को जान सकते हैं। बस अपने 'चित्त का प्रामाणिकता' के साथ ही 'अवलोकन' करें यह आवश्यक है।

*दूषित चित्त* --- : चित्त का सबसे नीचला स्तर है , दूषित चित्त। इस स्तर पर साधक सभी के दोष ही खोजते रहता है। दुसरा , सदैव सबका बुरा कैसे किया जाए सदैव इसीका विचार करते रहता है। दुसरों की प्रगति से सदैव 'इर्ष्या' करते रहता है। नित्य नए-नए उपाय खोजते रहता है कि किस उपाय से हम दुसरों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। सदैव नकारात्मक बातों से , नकारात्मक घटनाओं से , नकारात्मक व्यक्तियों से यह 'चित्त' सदैव भरा ही रहता है।

क्रमशः ......

*मधुचैतन्य जन २०१५*

*॥आत्म देवो भव:॥*

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