आत्मशांति से विश्वशांति संभव है

मेरी बातें लक्ष्मीबहन और बाकी सभी स्रियाँ बड़े शांति से सुन रही थी । वे बोलीं , आपने राष्ट्रसंघ में जाकर अपनी बात रखना चाहिए। आप कितनी अच्छी तरह से विश्वशांति पर बोलते हो। मैंने कहा , जो मेरे भीतर अनुभव करता हूँ , वही बात कहता हूँ। दूसरे दिन यही विषय वह मिलीट्री के अधिकारी आए थे उनके सामने भी निकला। उन्होंने उनका पक्ष रखा। वे बोले  , हम भी विश्वशांति के पक्षधर हैं लेकिन बशर्ते हमारी पड़ौसी राष्ट्र भी हो तो फिर कोई बात नहीं है। लेकिन अगर हमारे पड़ोस के राष्ट सैन्यशक्ति बढाएँ तो हमें भी बढाना रख पाएँगे। मैंने उनको कहा , आप जो कह रहे हो वह भी सही है। लेकिन आत्मशांति से विश्वशांति संभव है यह भी सही है। अपनी सुरक्षा की दिशा में तो सभी राष्ट काम कर रहे हैं लेकिन आत्मशांति की ओर कोई भी राष्ट्र काम नहीं करता है। आत्मशांति के लिए केवल आध्यात्मिक संस्थाएँ  ही कार्य कर रही हैं।

हि. का. स. यो.भाग -६ -१५८

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी