ध्यान के संपूर्ण ज्ञान
ध्यान के संपूर्ण ज्ञान को अभी समाज जान नहीं पाया है। इसी कारण से मनुष्यसमाज समझता है- निर्विचारिता यानि ध्यान। वास्तव में , निर्विचारिता तो केवल एक स्थिति है जिसमें से ध्यान में जाया जाता है , पर निर्विचारिता यानि ध्यान नहीं है। निर्विचारिता तो एक शारीरिक स्थिति है। अपने-आप को किसी एक बिन्दु पर केंद्रित करके अपने विचारों को नियंत्रित कर लेने की अवस्था निर्विचारिता की स्थिति कहलाती है। विचारों को नियंत्रित 'करने' में भी कर्ता का भाव है। इस स्थिति तक भी मनुष्य का शारीरिक अस्तित्व बना ही रहता है। यह स्थिति मनुष्य को थोडी शांति अवश्य प्रदान करती है , पर निर्विचार स्थिति यानि ध्यान नहीं है। इस स्थिति में भी मनुष्य शारीरिक स्तर पर ही रहता है।
निर्विचार स्थिति वह माध्यम है जिस स्थिति में से ध्यान की उच्च अवस्था में जाया जा सकता है , पर अपने शरीर के अस्तित्व को भूलाकर ही। और यह अस्तित्व भुलाया जा सकता है केवल समर्पण करके। इसलिए ध्यान की उच्च स्थिति सामूहिकता में समर्पण करके ही पाई जा सकती है। ध्यान की उच्च अवस्था पाने का यह एकमात्र मार्ग है।
*हिमालय का समर्पण योग ३/ ७६*
Comments
Post a Comment